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अर्थात् बौद्धों का माना हुआ जो विज्ञानाद्वैतवाद है वह न प्रत्यक्षका विषय है न अनुमानका
विषय है वचनका भी उसके साथ संबंध नहीं हो सकता इसलिये हे भगवन् ! आपकी वातको न सुननेवाले जो बौद्ध लोग हैं उनकी कष्टमय दशा है आपके मतका अवलंबन लिये विना वे अपने अभीष्ट तत्वको सिद्धि नहीं कर सकते । इस रीति से बौद्धों का कल्पनारहित प्रत्यक्ष प्रमाणका मानना और विज्ञान मात्र ही संसार के अंदर तत्व है इत्यादि कहना युक्ति और प्रमाणसे बाधित है ॥ १२ ॥
ऊपर कहे हुए प्रमाणके परोक्ष और प्रत्यक्ष भेदों में परोक्षज्ञानका आदिम भेद मतिज्ञान के विशेष भेद प्रतिपादन करने के लिये सूत्रकार सूत्र कहते हैं
मतिः स्मृतिः संज्ञा चिंताभिनिबोध इत्यनर्थीतरं ॥ १४ ॥
मति स्मृति संज्ञा - प्रत्यभिज्ञान, चिंता - तर्क और अभिनिबोध - स्वार्थानुमान, आदि आपस में अनतर हैं - एक ही अर्थका प्रतिपादन करते हैं ।
इतिशब्दस्यानेकार्थसंभवे विवक्षावशादाद्यर्थसंप्रत्ययः ॥ १ ॥
इति शब्द के अनेक अर्थ होते हैं जिस तरह - 'ईतीति पलायते' मारता है इस कारण भागता है । 'वर्षतीति धावति' मेघ बरसता है इस कारण दौडता है यहांपर इति शब्दका अर्थ 'कारण' है। 'इति स्म उपाध्यायः कथयति' उपाध्याय ऐसा कहते थे यहाँपर इति शब्दका अर्थ 'ऐसा' है। गौरश्वः शुक्लो नीलः चरति प्लवते जिनदत्तो देवदत्त इति अर्थात् गाय, घोडा, श्वेत नील, चरना कूदना देवदच, जिन
अध्याय
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