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________________ ISSO-SERISPERBPS PRECOLORLANACHERYTBPisclesoles ज्ञक है उसतरह अवधि शब्द भी इकारांत होनेसे सुसंज्ञक है इस रीतिसे मति शब्दके समान अवधि ? शब्दका भी सबसे पहिले उल्लेख करनेमें अल्प अक्षरपना दूसरा कारण बतलाया है। अब अवधिका सबसे पहिले उल्लेख नहीं किया जा सकता क्योंकि अवधिमें अक्षर अधिक हैं मतिमें थोडे हैं इसलिये मति शब्दका ही सबसे पहिले उल्लेख हो सकता है। __तदनंतरं श्रुतं ॥ १८॥ विषयनिबंधनतुल्यत्वाच्च ॥ १९॥ तत्सहायत्वाच्च ॥ २०॥ विना मतिज्ञानके श्रुतज्ञान नहीं हो सकता किंतु मतिज्ञानपूर्वक ही श्रुत होता है इसलिये मतिके १ हूँ बाद श्रुतका पाठ रक्खा है। अथवा "मतिश्रुतयोनिबंधी द्रव्येष्वसर्वपायेषु" अर्थात् मतिज्ञान और हूँ है श्रुतज्ञान कुछ पर्यायोंके धारक समस्त द्रव्योंकोजानते हैं, यह आगे जाकर दोनोंका विषय समानरूपसे है सूत्रकारने बतलाया है इसलिये दोनोंका विषयसंबंध समान रूपसे होनेके कारण मतिके बाद श्रुतका है पाठ रक्खा गया है। किंवा जिस तरह पर्वत और नारदका साहचर्य है जहां जहां नारद है वहां वहां से पर्वत है एवं जहां जहां पर्वत है वहां वहां नारद है, दोनोंमें एकको छोडकर दूसरा नहीं रहता, उसी ६ तरह मति और श्रुतज्ञानका भी साहचर्य है जहां जहां मतिज्ञान रहेगा वहां वहां नियमसे श्रुतज्ञान रहेगा हू एवं जहां जहां श्रुतज्ञान रहेगा वहां वहां नियमसे मतिज्ञान रहेगा दोनोमें एक दुसरेको छोडकर नहीं डू हैं रह सकता इसलिये भी मतिके बाद श्रुतका पाठ रक्खा गया है इस प्रकार इन तीन कारणों से श्रुतका " ही क्रम प्राप्त है इसलिये मतिके बाद श्रुनका पाठ रक्खा है। प्रत्यक्षत्रयस्यादाववधिवचनं विशुद्ध्यभावात् ॥ २१॥ .. यद्यपि मतिज्ञान और श्रुतज्ञानकी अपेक्षा अवधिज्ञानमें विशुद्धता अधिक हैं क्योंकि मति और , MEROLACREASECRETRE २३२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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