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घर तथा पुत्र है, इसप्रकारके भेद विज्ञानके दूर होजाने पर केवल चैतन्य स्वरूप अवस्थाका जो प्रगट स०रा० ॐ हो जाना है उसीका नाम मोक्ष है तथा नैयायिक और वैशेषिकोंका कहना है कि बुद्धि १ सुख २ दुःख
३ इच्छा ४ द्वेष ५ प्रयत्न ६ धर्म ७ अधर्म ८ और संस्कार ९ इन विशेष गुणोंकी जिस अवस्थामें आत्मा से सर्वथा जुदाई हो जाती है उसीका नाम मोक्ष है । इसप्रकार मोक्षके स्वरूपमें भी लोगों की भिन्न भिन्न कल्पना पाई जाती है । सो ठीक नहीं । अपने अपने मतके अनुसार वे मोक्ष के माननेमें चाहे विशेषता सिद्ध करें परन्तु सामान्य रूपसे (कर्मविप्रमोक्ष) समस्त काँका सर्वथा नाशरूप मोक्ष सभीको स्वीकार है। मोक्ष कोई भी पदार्थ नहीं यह कोई भी भाववादी नहीं कह सकता जब यह वात है तब हमारे सिद्धांतमें कोई विरोध नहीं आता और मोक्ष सामान्यमें किसीका झगडा भी नहीं। वह प्रसिद्ध ही है। इसलिये पूछनेवालेने प्रसिद्ध मोक्षका स्वरूप न पूछ सभी वादियों के विवादका स्थान जो उसका उपाय उसे पूछा है वह उचित ही है। विशेष- ।
जिसप्रकार जैन सिद्धान्तमें यह वात वतलाई है कि जबतक आत्माके माथ कर्मोंका सबंध रहता है तब तक उसे संसारमें ही घूमना पडता है किन्तु जिस समय कौका संबंध छूट जाता है उस समय * वह आत्मा मोक्ष प्राप्त कर लेता है उसीप्रकार बौद्ध सिद्धान्तमें भी यह वात है कि जब तक आत्माके में
साथ रूप वेदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान इन पांच स्कंधोंका संबंध रहता है तबतक आत्माको संसार । में ही रुलना पडता है और जिस समय इन पांचों स्कंधोंकी आत्मासे जुदाई हो जाती है उस समय ; यह आत्मा मुक्तात्मा बन जाता है।
सांख्य सिद्धान्तमें वैसे तो २६ पदार्थ माने हैं परंतु मुख्य पदार्थ प्रकृति (गुण) और पुरुष दोही
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