SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग PISONSORRBIB | राजू वा आठ राजू स्पर्शन है अर्थात सोलहवें स्वर्ग में रहनेवाले देव यदि नीचे गमन करें और मध्यलोकमें | आवे तो उनका छह राजू और उससे भी नीचे तीसरे नरक जाय तो आठ राजू स्पर्शन है। इसीतरह | एक जीवकी अपेक्षा स्पर्शनका विधान है वहां स्पर्शनसे एक जीवका निश्चय होता है और जहां अनेक जीवॉकी अपेक्षा स्पर्शनका विधान है वहांपर स्पर्शनसे अनेक जीवोंका निश्चय होता है। स्थितिमतोऽवधिपरिच्छेदार्थ कालोपादानं ॥३॥ . वर्तमानकालकी अपेक्षा वा तीनों कालोंकी अपेक्षा जिस वस्तुका क्षेत्र आदिमें रहना निश्चित हो | चुका है उसीकी कालके द्वारा अवधि कही जासकती है अर्थात् वह इतने कालतक अपने क्षेत्र आदिमें 5 जा रहेगी यह कहा जा सकता है इसलिये सूत्रमें स्पर्शनके बाद कालका पाठ रक्खा गया है। अंतरशब्दस्यानेकार्थवृत्तरिच्छद्रमध्यावरहश्चन्यतमग्रहणं ॥७॥ ___ अंतर शब्दके अनेक अर्थ हैं जिसतरह 'सांतरं काष्ठं सछिद्रमिति' यह काष्ठ छेद सहित है, यहॉपर | अंतर शब्दका अर्थ छेद है। 'द्रव्याणि द्रव्यांतरमारंभंते' द्रव्य ही दूसरी द्रव्योंकी रचना करते हैं यहाँपर | अंतर शब्दका अर्थ अन्य (दूसरा) है। 'हिमवत्सागरांतरे' हिमवन पर्वत और सागरके मध्यमें, यहांपर। अंतर शब्दका मध्य अर्थ है। 'स्फटिकस्य शुक्लरक्तातरस्य तद्वर्णता' सफेद लाल आदि पदार्थों के समीप | रहने पर स्फटिक, सफेद लाल रूप परिणत हो जाता है। यहांपर अंतरशब्दका समीप अर्थ है। - "वाजिवारण लोहानां काष्ठपाषाण वाससां । नारीपुरुष तोयानामंतरं महदंतरं ॥" घोडा॥8 | हाथी और लोह, काठ पत्थर और वस्र, स्त्री पुरुष और. जल इनका विशेष, महान विशेष है। यहांपर अंतर शब्दका अर्थ विशेष है। 'प्रामस्यांतरं कूपाः' कूवें गांवसे बाहर हैं, यहॉपर अंतर RECECRUGRAMCALCRUGRAMBAKAMALARIA ASANGACASSES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy