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________________ तरा. आदि स्वरूप है यह पुद्गल द्रव्यका निर्देश है । निश्चयनयसे अजीवका स्वामी अजीव है और व्यवहार 81 ५ नयसे पुद्गलके कार्योंका भोगनेवाला जीव है इसलिए जीव स्वामी है । द्वयणुकका भेद करनेसे अणुरूप ૮૭ । पुद्गलद्रव्यकी उत्पचि होती है । संघात-अवयवों के मिलनेसे वा भेदसे वा भेद और संघात दोनोंसे स्कंधरूप पुद्गलद्रव्यकी उत्पत्ति होती है इसलिए निश्चय नयसे पुद्गल द्रव्यका साधन-कारण भेद आदि है व्यवहारसे काल आदि भी कारण हैं सब द्रव्योंका रहना वास्तविक दृष्टिसे अपनेमें ही है इस: लिए निश्चयनयसे तो पुद्गल द्रव्यका अधिकरण पुद्गल द्रव्य ही है तथा व्यवहार नयसे उसका | सामान्यरूपसे अधिकरण आकाश है और विशेष रूपसे घट आदि अधिकरण हैं क्योंकि जल आदि ॥ पुद्गल, घट आदिमें भी रहते हैं। द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा पुद्गल द्रव्यकी स्थिति अनादि अनंत है | दू| क्योंकि रूपादिगुणस्वरूप पुद्गल द्रव्यका कभी नाश नहीं हो सकता तथा पयायार्थिकनयकी अपेक्षा हैएक समय आदि है क्योंकि जो पुद्गलकी पर्याय एक समय ठहरकर नष्ट होती है उसकी स्थिति एक | समय है । जो दो समय चार समय घंटा चार घंटा दिन चार दिन आदि ठहरकर नष्ट होती है उसकी |स्थिति दो समय आदि है । रूप स्पर्श आदि परिणमनस्वरूप पुद्गल द्रव्य द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा | एक है और पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा उसके अनेक संख्याते असंख्याते और अनंते पर्याय हैं इसलिये उनकी अपेक्षा अनेक संख्यात असंख्यात और अनंत है। इसप्रकार यह पुद्गल द्रव्यमें निर्देश आदि भेदोंके निरूपणका क्रम है। निश्चयनयसे धर्म द्रव्य भी दर्श प्राणोंसे रहित है और व्यवहारनयसे नाम आदि स्वरूप है यह धर्म १ पुद्गल द्रव्यके समान ही धर्म आदि द्रव्योंका यहां निर्देश लिखा गया है। घमे भादिकी विशेषता बुदयनुसार समझ लेना चाहिये। AURABABISANSADASARAMADABASI KALANGUAGARAJGALAMGAMALAMMARCH
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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