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जीता है इसलिये व्यवहार नयकी अपेक्षा वीर्य आदि भी जीवके कारण हैं । जीव के रहने की जगह कौन है ? इस प्रश्नका समाधान
स्वप्रदेशाधिकरणो निश्चयतः ॥ १० ॥
विके प्रदेश असंख्याते माने हैं । नाम कर्मके उदयसे जीव जैसा शरीर धारण करता है उसके अनुसार जीवके प्रदेश संकुचित और फैल तो जाते हैं. अर्थात् जिससमय छोटा शरीर धारण करता है उससमय जीवके प्रदेश संकुचित हो जाते हैं और जिससमय विशाल शरीर धारण करता है उससमय फैल जाते हैं तो भी यह बात नहीं कि छोटे शरीर के धारण करनेपर वे कुछ कम हो जांय और विशाल शरीर धारण करनेपर अधिक हो जांय किंतु वे असंख्यात ही रहते हैं इसलिये जिसतरह आकाशके अनंत प्रदेश हैं और वे अनंत प्रदेश ही निश्चयनयसे आकाश के रहने के स्थान हैं उसीप्रकार जीवके जो असंख्यात प्रदेश हैं निश्चयनयसे वे ही जीवके रहने के स्थान हैं। यदि कर्म के उदयसे जीव निगोदियाका शरीर धारण करले तो उसके प्रदेश कम नहीं होते और यदि महामत्स्यका विशाल शरीर धारण करले तो अधिक नहीं होते वे असंख्यातके असंख्यात ही रहते हैं ।
व्यवहारतः शरीराद्यधिष्ठानः ॥ ११ ॥
किंतु कर्म के उदय से जीव जैसा शरीर धारण करता है उसमें ही वह रहता है इसलिए व्यवहार नयकी अपेक्षा जीवके रहनेका स्थान गरीर है । जीवकी स्थिति कितनी है ? इस प्रश्नका समाधान -- स्थितिस्तस्य द्रव्यपर्यायापेक्षानाद्यवसाना समयादिका च ॥ १२ ॥
१ । असंख्येयः प्रदेशा धर्माधर्मैकजीवानां ॥ ८ ॥ तच्चार्थसूत्र अध्याय ५ ।
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भाषा.
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