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भाषा
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जिसतरह विरुद्ध नहीं माना जाता उसीप्रकार अस्तित्व आदि विरुद्ध धर्मोंका आधार एक भी घट पदार्थ विरुद्ध नहीं कहा जासकता। . नैयायिक और वैशेषिक सिद्धांतकारोंका यह कहना है कि-जिस पदार्थका ज्ञान अनुगताकारसे हो और जो अनुगताकाररूपसे ही कहा जाय वह सामान्य पदार्थ है और जिसका ज्ञान व्यावृत्ताकार से हो और व्यावृत्ताकाररूपसे ही जो कहा जाय वह विशेष पदार्थ है। जिस तरह गौ सामान्य पदार्थ है।
क्योंकि उसमें रहनेवाला गोत्व धर्म काली सफेद पीली लाल सभी गौओंमें अनुगतरूपसे रहता है। गौ । कहनेसे सभी गौओंका सामान्यरूपसे ज्ञान हो जाता है । काली गौ वा पीली गौ, यह विशेष पदार्थ है। 23 क्योंकि गौ सामान्यसे काली गौ वा पीली गौ व्यावृचस्वरूप है । एक देशस्वरूप है। परन्तु सामान्य हू विशेष इस शब्दकी व्युत्पचि सामान्यमेव विशेषः' अर्थात्-सामान्य ही विशेष हो जाता है, यह है ई वही युक्त भी है क्योंकि काली गौरूप विशेषका, सामान्य गोंमें ही समावेश है इसलिये सामान्य गौका है काली गौ जब अवयव है तो वह सामान्यस्वरूप ही विशेष हो गया इस रूपसे सामान्य और विशेष | - दोनों धर्मविरुद्ध हैं तो भी उन दोनोंका एक ही आधार गौ पदार्थ जिसतरह विरुद्ध नहीं माना जाता उसी तरह अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक धर्मोंका आधार एक भी घट पदार्थ विरुद्ध नहीं कहा जासकता।
बौद्ध सिद्धांतकारोंका कहना है कि-वर्ण गंध आदि परमाणुओंका समुदायरूप परमाणु है और ६/ उन्होंने भिन्न २ लक्षणोंके धारक काकूत्व और बडत्व आदि पदार्थोंको रूपपरमाणुस्वरूप माना है तो जिसप्रकार काकूपना वा बडपना आदि विरुद्ध धर्मोंका धारक एक भी रूपपरमाणु विरुद्ध नहीं माना १७१ जाता उसीप्रकार अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक धर्मोंका आधार एक भी घट पदार्थ विरुद्ध नहीं हो सकता।
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