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तालाब विपक्ष है क्योंकि वहांपर न अग्नि है न धूम है दोनोंका अभाव है। यहांपर जो धूम हेतु सपक्ष | ब०रा० रसोई खानेमें है, उसीका विपक्ष तलावमें अभाव कहा गया है इसलिये सपक्षकी अपेक्षा सत्व और १७५ विपक्षकी अपेक्षा असत्त्व इसतरह आपसमें विरुद्ध भी सत्व असत्वरूप दोनों धर्मोंका एक ही हेतुमें|
Pा होना जिसतरह विरुद्ध नहीं माना जाता उसीतरह आपसमें विरुद्ध भी आस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक | धर्मोंका एक घट आदि किसी पदार्थमें स्वरूप पररूप आदिकी अपेक्षा होना भी विरुद्ध नहीं कहा जा || सकता। परंतु हां ! जहां पर सपक्ष विपक्षकी अपेक्षा न कर किसी एक जगह पर वादी तो हेतुका सत्व |
कहे और प्रतिवादी उप्तका असत्त्व कहे जिसतरह वादी तो यह कहे कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह का है. परिणामी है और प्रतिवादी यह कहे कि शब्द नित्य है क्योंकि वह अपरिणामी है अर्थात् वादी परिणा
मित्व हेतुका शब्दमें सत्व माने और प्रतिवादी उसका शब्दमें अभाव कहे वहांपर शब्दमें परिणामिल है । वा अपरिमाणिल इसप्रकारका संशयात्मक ज्ञान होता है इसलिए वहां संशयज्ञानका होना ठीक है। | यदि कदाचित् स्वरूप पररूप आदिकी अपेक्षा रहने पर भी घट आदि किसी एक पदार्थमें अस्तित्व || || नास्तित्व आदि धर्मोंका होना जवरन संशय माना जायगा तो सपक्ष विपक्षकी अपेक्षा एक ही हेतुमें| ६ सत्व और असत्वका होना भी संशय माना जायगा। संशय यथार्थ वस्तुका निश्चायक होता नहीं इस-1 हू लिये धूम हेतुसे जो वह्नि साध्यकी सिद्धि मानी जाती है वह अब यथार्थ सिद्धि न मानी जा सकेगी। अथवा
एकस्य हेतोः साधकदूषकतानिसंवादवहा ॥१३॥ उपर्युक्त रीतिसे अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनिसत्व आदि आपसमें विरुद्ध भी अनेक धर्म नि
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