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तरा०
|| नियमित कारण मोजूद हैं तो एक पदार्थमें अनेक विरुद्ध कारण मानने पड़ते हैं इसलिए एक आधार
अनेक विरोधी कारणों के रहनेसे संशय ज्ञानही होगया इसतिसे अनेकांतवाद संशयका कारण है यह १७३ |प्रश्न ज्योंका त्यों मौजूद है ? सो ठीक नहीं। .
विरोधाभावात्संशयामावः॥१०॥ अर्पणाभेदादावरोधः पितृपुत्रादिसंबंधवत् ॥ ११ ॥
जिसतरह जाति कुल रूप और नामका धारक एक भी देवदच पिता पुत्र भाई मामा कहा जाता का है। यद्यपि जो पिता है वह पुत्र नहीं होसकता जो पुत्र है. वह पिता नहीं हो सकता । जो मामा है वह
|भानजा एवं जो भानजा है वह मामा नहीं कहा सकता इसरूपसे विरोध दीख पड़ता है परन्तु जन्य 18|| जनकत्वरूप सामर्थ्यकी अपेक्षा करनेपर कोई विरोध नहीं होसकता अर्थात् जो पिता है वह अपने पुत्र 18 की अपेक्षा है। पुत्र अपने पिता की अपेक्षा है। मामा अपने भानजे की अपेक्षा है और भानजा अपने || मामाकी अपेक्षा है किन्तु यह बात नहीं कि जिसतरहं देवदच अपने पुत्रकी अपेक्षा पिता है उसतरह
| अपने पिता वा मामा आदिकी अपेक्षा भी पिता हो वा अपने पिताका पुत्र, मामाकी अपेक्षा भानजा || आदि है उसतरह अपने पुत्रकी अपेक्षा वा मामा आदि की अपेक्षा भी पुत्र है और भानजा वा पिता|
आदिकी अपेक्षा भी भानजा हो । उसीतरह एक भी घट अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व आदि । अनेक धर्मस्वरूप कहा जा सकता है यद्यपि जो घट आस्तत्व स्वरूप है वह नास्तित्वस्वरूप नहीं हो।
सकता, जो नास्तित्वस्वरूप है वह आस्तित्व स्वरूप नहीं हो सकता वा जो नित्यत्व आदि स्वरूप है वह 18 अनित्यत्व आदि स्वरूप नहीं कहा जा सकता इसलिये विरोध दीख पडता है परन्तु स्वरूप पररूप आदि ॥ १७३ ॥ शक्तियोंकी अपेक्षा करनेपर कोई विरोध नहीं हो सकता अर्थात् स्वस्वरूपकी अपेक्षा घट अस्तित्व स्व
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RESEALS