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________________ तरा. RSHASHESIS9054-90%ABASAHEBHASEEM काका मामा आदि कहा जाता है और देखनेमें जो पिता है वह काका नहीं हो सकता जो काका है वह | मामा नहीं हो सकता क्योंकि पिता काका आदि धर्म आपसमें विरुद्ध हैं परन्तु.एक ही पुरुष अपने पुत्र है की अपेक्षा पिता है। भतीजेकी अपेक्षा काका है और भानजेकी अपेक्षा मामा कहा जाता है इसप्रकार PI अपेक्षासे कहनेपर कोई दोष नहीं होता और वैसा व्यवहार विना किसी शंकासे संसारमें होता. दीख का पडता है । उसीतरह एक ही पदार्थ आस्तित्व नास्तित्व वा नित्यत्व अनित्यत्व आदि स्वरूप कहा जाता है और जो अस्तित्वस्वरूप है वह नास्तित्वस्वरूप नहीं हो सकता। जो नास्तित्वस्वरूप है वह अस्तित्व स्वरूप नहीं हो सकता अथवा जो नित्यस्वरूप है वह अनित्यस्वरूप नहीं हो सकता, जो अनित्यस्वरूप हे वह नित्यस्वरूप नहीं हो सकता क्योंकि अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व आदि धर्म परस्परमें विरुद्ध । है। परन्तु स्वस्वरूपकी अपेक्षा आस्तित्वस्वरूप, परस्वरूपकी अपेक्षा नास्तित्वस्वरूप, द्रव्यार्थिक नयकी है अपेक्षा नित्यत्वस्वरूप, पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अनित्यत्वस्वरूप इस तरह अपेक्षाका अवलंबन करने पर कोई दोष नहीं हो सकता । सात ही भंग क्यों माने छह, पांच, वा चार आदि ही क्यों नहीं माने | गए ? एव शब्दका अर्थ क्या है ? चकार शब्दका प्रयोग क्यों किया जाता है ? केवल अस्तित्व वा केवल || नास्तित्व आदि एक ही भंग माननेपर क्या क्या दोष आता है ? इसका खुलासा श्लोकवार्तिक और | अष्टसहस्रीमें किया गया है, विद्वान लोग मननपूर्वक वहां देख लें। छलमात्रमनेकांत इति चेन्न छललक्षणाभावात ॥९॥ ___जो पदार्थ आस्तित्वस्वरूप है वही नास्तित्व स्वरूप कह दिया जाता है और जो पदार्थ नित्यस्वरूप वा एक स्वरूप है वही अनित्यस्वरूप वा अनेक स्वरूप कहा जाता है इस रीतिसे अनेकांत वादका कथन MAUCSGLORCA MEREGAON २२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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