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SANI-CollegeseRECAMERA
अर्थ-जिस पदार्थका कुछ न कुछ नाम मोजूद है उसीकी स्थापना होती है विना नामके स्थापना नहीं हो सकती क्योंकि नाम रहते ही 'यह अमुक है' इसप्रकार स्थापना की जा सकती है इसलिये नामके वाद स्थापनाका पाठ रक्खा गया है।
द्रव्यभावयोः पूर्वापरन्यासः पूर्वोत्तरकालवृत्तित्वात् ॥ १७॥ ___द्रव्यका पहिले और भावका पीछे जो पाठ रक्खा गया है वह पूर्व और उचरकालकी अपेक्षा है। पूर्वकाल द्रव्यका विषय है और उचरकाल भावका विषय है। अथवा
तत्त्वप्रत्यासत्तिप्रकर्षाप्रकर्षभेदावा तत्क्रमः ॥१८॥ तत्त्वशब्दका अर्थ भाव है यह ऊपर कहा जा चुका है । द्रव्य स्थापना और नाम निक्षेपोंका जन्म भावके ही आधार है इसलिये नाम आदि सबमें भाव प्रधान है । उस प्रधान भाव शब्दके समीपमें द्रव्य शब्दका पाठ रक्खा है क्योंकि भावका आधार द्रव्यके सिवा अन्य नहीं । द्रव्यके समीपमें स्थापनाका पाठ रक्खा है क्योंकि जिस पदार्थका अतद्भाव है-साक्षात् वंह उपस्थित नहीं है उसके तद्भावमें अर्थात उसको उसीरूपसे मनवानेमें प्रधान कारण स्थापना है । स्थापनाके द्वारा साक्षात् पदार्थ न हो तो भी वह साक्षात् सरीखा मनवा दिया जाता है । स्थापनाके समीपमें नामका पाठ है क्योंकि भावसे वह अत्यंत दूर है । इसप्रकार भावकी अपेक्षा समीप वा दूर होनेके कारण नाम आदि निक्षेपोंका क्रमपूर्वक कथन है।
१ द्रव्य स्वयं भावरूप परिणत होता है इसलिये भाषके समीप हा द्रम्पका उल्लेख किया गया है। भावकेलिये द्रव्य कारणरूप सामग्री है।
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