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________________ भाषा तरा १५ BARDA III फल देनेकी शक्तिकी हीनाधिकताको अनुभागबंध कहते हैं ।बंधनवाले कर्मों की संख्या निर्णयको प्रदेश 5 बंध कहते हैं । यह प्रकृति स्थिति आदिका पारिभाषिक अर्थ है इनके उत्तरोत्तर भेद और विशेषस्वरूप | || का विस्तारसे वर्णन स्वयं ग्रंथकार करेंगे । इसप्रकार जीव अजीव आदि तत्वोंका लक्षण बतला दिया |गया। अब उनको क्रमसे कहनेका कारण बतलाते हैं तादर्थ्यात्परिस्पंदस्यादौ जीवग्रहणं ॥२१॥ मोक्षमार्गके स्वरूपका कथन आत्माके लिये है क्योंकि मोक्ष पर्याय आत्मा हीकी है तथा जीव R अजीव आदि तत्वोंका जो उपदेश है वह भी आत्माके ही लिये है क्योंके उपयोग स्वभावका धारक | आत्मा ही है इसलिये वही उपदेश ग्रहण कर सकता है इसरीतिसे जीव पदार्थ ही सबमें मुख्य है अतः 5 'जीवाजीवासूवेत्यादि' सूत्रमें सबसे पहले जीवका ग्रहण किया है। तदनुग्रहार्थत्वात्तदनंतरमजीवाभिधानं ॥ २२ ॥ शरीर वाणी मन श्वासोच्छ्वासप्से अजीव, जीवका उपकार करता है इसलिये जीवका उपकारी || होनेसे जीवके बाद अजीवका उल्लेख किया गया है। "जीवका अजीव कैसे उपकार करता है यह 'शरीरवामनःप्राणापानाः पुद्गलानां' इस सूत्रकी व्याख्यामें खुलासारूपसे कहा जायगा।" ___तदुभयाधीनत्वात्तत्समीपे आस्रवग्रहणं ॥ २३ ॥ * आत्मा और कर्मके आपसमें संबंध होने पर आस्रवतत्त्वकी सिद्धि होती है इसलिये जीव और | अजीवका निकट संबंधी होनेसे अजीवके बाद आस्रवका विधान है। SRRORBAGLUG56490, KAILASHLOROPAGEGROGRAMMERIALLECREGA ११५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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