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तकरा.
भाषा
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| किवाड सुरक्षित और मजबूतीसे बंद हैं वह नगर सुरक्षित समझा जाता है और शत्रुलोग उसमें प्रवेश ६ नहीं कर सकते उसीतरह आगे कहे जानेवाले गुप्ति समिति धर्म अनुप्रेक्षा और परीषहजयरूप चारित्रों RI के द्वारा जिसके इंद्रिय कषाय और योग वश हो चुके हैं उसके कर्मों के लानेमें कारण मिथ्यादर्शन आदि
रुक जाते हैं इसलिये उसके संवर होता है। । विशेष-मनोगुप्ति वचनगुप्ति और कायगुप्ति ये तीन गुप्तियां हैं। ईर्या भाषा एषणा आदाननिक्षे.
पण और आलोकित-पानभोजन ये पांच समिति हैं। उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव सत्य शौच संयम तप | त्याग आकिंचन्य और ब्रह्मवर्य दश धर्म हैं । अनित्य अशरण संसार एकत्व अन्यत्व अशुचित्व आसूव | संवर निर्जरा लोक बोधिदुर्लभ और धर्म ये बारह अनुपेक्षा हैं । क्षुधा तृष्णा शीत उष्ण देशमशक | नाम्य अरति स्त्री चर्या निषद्या शय्या आक्रोश वध याचनाअलाभ रोग तृणस्पर्श मल सत्कारपुरस्कार
प्रज्ञा अज्ञान और अदर्शन ये बाईस परीषह हैं। ये संवरके कारण हैं और इनके द्वारा मिथ्यादर्शन अ| विरति प्रमाद कषाय और योग ये जो आसूव और बंधके कारण हैं उनका प्रतिरोध हो जाता है। इन | सबका स्वरूप आगे यथावसर विस्तारसे कहा जायगा।
एकदेशकर्मसंक्षयलक्षणा निर्जरा ॥१९॥ जो कर्म गृहीत-मौजूद हैं उनका तपकी
तपकी विशेषतासे एकदेशरूपसे क्षय हो जाना निर्जरा है।। निर्जराका अर्थ झड जाना है। जो निर्जराके समान हो वह निर्जरा है क्योंकि मंत्र औषधके बलसे जिस | की शक्ति नष्ट हो चुकी है ऐसा विष जिसतरह किसी प्रकारकी हानि करनेवाला नहीं होता उसीतरह | सविपाक और अविपाक निर्जराके कारण विशिष्ट तप द्वारा जिन कर्मोंकी शक्ति नष्ट हो चुकी है वे फिर | संसारमें आत्माको नहीं घुमा सकते।
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