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चा०रा० भाषा
द्वित्व आदि संख्या भी संख्यावान पदार्थसे भिन्न नहीं है । यदि एकत्व आदि संख्याको संख्यावान द्रव्य
पदार्थ से भिन्न माना जायगा तो वह द्रव्य असंख्येय (जिसकी कोई संख्या न हो) कहा जायगा जो कि ९२२५
बाधित है। यदि कदाचित् यहांपर यह उत्तर दिया जाय कि
यद्यपि संख्येयवान द्रव्यपदार्थसे संख्या भिन्न है तथापि उसमें संख्याका समवाय संबंध है इसलिये समवाय सम्बन्धसे संख्याका आधार रहनेसे द्रव्य संरूपेय कहा जा सकता है ? सो ठीक नहीं। क्योंकि || कथंचित् तादात्म्य सम्बन्धसे भिन्न समवाय पदार्थ ही असम्भव है किंतु वह कथंचिव तादात्म्प स्वरूप ही
है। कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध रहने पर संख्यासरूप ही द्रव्य मानाजायगा, संख्पासै भिन्न नहीं माना || जा सकता। इसलिये यह बात सिद्ध हई कि एकत्ल द्वित्व आदि संख्या समान निमिचोंके भेदसे सत्त्व है और असत्त्वका आपसमें भेद है तथा एक वस्तुमें भिन्न भिन्न रूपसे जब उनकी प्रतीति मौजूद है तब । उनमें किसी प्रकारका विरोध नहीं कहा जा सकता। यदि कदावित् यहॉपर फिर शंका उठाई जाय कि___ • अस्तित्व और नास्तित्वकी जो एक वस्तु प्रतीति मानी गई है वह प्रतीति मिथ्या है ? सो ठीक नहीं। इस प्रतीतिका कोई भी बाधक प्रमाण नहीं इसलिये इस प्रतीतिको मिथ्या नहीं माना जा सकता।
यदि यहाँपर यह कहा जायगा कि अस्तित्व नास्तित्व दोनों धर्म विरोधी होनेसे एक जगह नहीं रह सकते । इसलिये उनके एक वस्तुमें रहने में विरोध ही बाधक है ? सो ठीक नहीं। विरोधको बाधक कहने पर
अन्योन्याश्रय दोष लागू होगा क्योंकि विरोधके सिद्ध रहनेपर अस्तित्व नास्तित्व की एक जगह प्रतीतिका
१-खापेक्षापेक्षकत्वं ह्यन्योग्याधयत्वं' अर्थात् जहाँपर उसको उसकी और उसको उसकी अपेक्षा होगी यहाँपर अन्योन्याश्रय दोष होता है यहाँपर विरोध मिथ्यात्यप्रतीति के आधीन है और मिथ्यात्वपतीति विरोधके आधीन है इसलिये प्रापसमें पकको दूसरे की अपेक्षा रहने ड्रा पर अन्योन्याश्रय दोष है।
बनानन्याला
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