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________________ अध्याय RECRUGGEORA2-%15656GUREScri पटका धर्म होगा वह कभी घटमें नहीं रह सकता यदि पटरूपासत्त्वको पटका धर्म मानकर उसकी घटमें सचा मानी जायगी तो-पटके अंदर फैलना बुना जाना आदि अनेक आकार हैं वे भी घटके अंदर होने चाहिये परंतु वे घटमें दीख नहीं पडते इसलिए पटरूपासत्व कभी पट आदिका धर्म नहीं माना जा । सकता। यदि कदाचित् यह द्वितीय पक्ष अंगीकार किया जायगा कि पररूपासत्व (पटरूपासत्त्व) घट हीका धर्म है पटका नहीं तब तो अभिप्रेतकी सिद्धि होनेसे विवादकी ही समाप्ति हो जाती है क्योंकि भावधर्मके संबंधसे जिसप्रकार भावपना पाया जाता है उसीप्रकार अभावधर्मके संबंधसे अभाव भी खीकार करना चाहिये किंतु यह न मानना चाहिये कि वस्तुमें भावपना तो खधर्म है और अभावपना परधर्म है इस रीतिसे जब यह बात सिद्ध हो गई कि जिसप्रकार स्वस्वरूपकी अपेक्षा होनेवाला अस्तित्व धर्म घटका निजधर्म है उसीप्रकार पटरूपादिकी अपेक्षा होनेवाला नास्तित्व भी घट हीका धर्म है, पटका धर्म नहीं इसलिए घटो नास्तीति' अर्थात् घट नहीं है, यह प्रयोग निर्वाध है । यदि कदाचित अभावधर्मके संबंधसे घटको असत् न माना जायगा तो भावधर्मके संबंधसे भी उसे 'सद' न कहना होगा क्योंकि अस्तित्व नास्तित्व समानरूपसे घटके स्वरूप हैं। यदि नास्तित्वको घटका स्वरूप न माना जायगा तो अस्तित्व भी घटका स्वरूप न हो सकेगा इसलिए स्वरूप आदिकी अपेक्षा होनेवाले आस्तित्वके समान पररूप आदिकी अपेक्षा होनेवाला नास्तित्व भी घटका ही स्वरूप है। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि जिसतरह भूतलमें घट नहीं है यहांपर सूतलमें रहनेवाले घटाभावकी प्रतियोगिता ही भूतलमें नास्तित्व माना गया है अर्थात् भूतल में रहनेवाला जो घटका अभाव उसका प्रतियोगी घट है और वह प्रतियोगिता घटका ही धर्म माना जाता है, भूतलका नहीं, उसीप्रकार घटमें पटरूप का न रहना इसका RELASSAGESGEEGCAREERAGES १२२०
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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