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मध्याद
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इसलिये अनेकांतवाद नियमसे संशयका कारण है ? सो ठीक नहीं। जिसप्रकार एक ही पुरुषको अपने पुत्रकी अपेक्षा पितापना है और अपने पिताकी अपेक्षा पुत्ररना है, ये दोनों आपसमें विरोधी नहीं | माने जाते क्योंकि विवक्षाके भेदसे पिता और पुत्रका भेद है अर्थाद एक ही पुरुष विवक्षाके भेदमे पुत्र भी कह दिया जाता है और पिता भी कह दिया जाता है तथा अन्वयव्यक्तिरेकी धूम आदि हेतुओंमें महानस (रसोई खाना) आदि सपक्षकी अपेक्षा सत्व और तालाब आदि विपक्षको अपेक्षा अपत्त माना जाता है इसलिये जिसप्रकार यहॉपर एक ही धुम आदि हेतुमें अस्तित्व नास्तित्वका आपममें | विरोध नहीं अर्थात् विवक्षाके भेदसे एक ही धूम आदिहेतु मत और अमत दोनॉरकारका माना जाता है उसीप्रकार जीवमें भी स्वस्वरूपकी अपेक्षा अस्तित्व है और परस्वरूपकी अपेक्षा नास्तित्व है इसप्रकार अवच्छेदके भेदसे एक पदार्थमें अस्तित्व नास्तिवकी अर्पणा होनेमे दोनों का एक जगहपर रहना विरोधोत्पादक नहीं। हम रूपसे अस्तित्व नास्तित्वादि स्वरूप अनेकांतवादमें संशयकी संभावना करना निर्मूल है। बहुतसे लोग यह कहते हैं कि अनेकांतवाद में विरोध आदि आठ दोपोंकी संभावना है उनका कहना इसप्रकार है
जिसप्रकार शीत और उष्ण पदार्थ आपसमें विरोधी हैं इसलिये वे एक जगह नहीं रह सकते उसी प्रकार विधि और निषेधस्वरूप वा भाव अभावस्वरूप अस्तित्व नास्तित्वधर्म भी एक जगह नहीं रह 3 सकते । यहाँपर अस्तित्व पदार्थ भावस्वरूप है क्योंकि उसकी विधिरूपसे प्रतीति होती है और नास्तित्व || 5 अभावस्वरूप है क्योंकि निषेधवाचक नञ् अव्ययसे उल्लिखित उमकी प्रतीति है । जहाँपर आस्तित्व ||६|| है रहेगा वापर उसका विरोधी नास्तित्वगुण नहीं रह सकता एवं जहां नास्तित रहेगा वहां उसका विरोधी
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