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६ पापा
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____ अर्थ-जिस समय पर्यायार्थिक नयको गौण और द्रव्यार्थिक नयको प्रधान माना जायगा उससमय है आसव बंध आदि भिन्न भिन्न पर्यायोंकी तो विवक्षा होगी नहीं किंतु अनादिकालीन पारिणामिक जीव है
और अजीव द्रव्यकी ही विवक्षा रहेगी इसलिये द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा आसव आदिका जीव और अजीवमें समावेश कहा जा सकेगा क्योंकि आसूव बंध आदि पदार्थ द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा जीव अजीव स्वरूप ही हैं। तथा जिस समय द्रव्यार्थिक नयको गौण और पर्यायार्थिक नयको प्रधान माना जायगा उस समय अनादि पारिणामिक जीव अजीव द्रव्यको विवक्षा तो होगी नहीं किंतु आसूव बंध आदि पर्यायोंकी ही विवक्षा होगी इसलिये पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा आसूव आदिका जीव और हूँ अजीवमें समावेश नहीं हो सकेगा क्योंकि आसूव बंध आदि पर्यायें पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा जीव अजीवसे भिन्न हैं इस रीतिसे द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा आस्व आदिका जीव और अजीवमें समावेश
और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा समावेशका अभाव इसप्रकार अनेकांतसे जब आसूव बंध आदिका जीव और अजीवमें समावेश और असमावेश दोनों सिद्ध हैं तब जीव और अजीवमें ही आसव आदि । का समावेश होनेके कारण उनका जुदा कथन करना व्यर्थ है' यह वात युक्त नहीं।
तेषां निर्वचनलक्षणक्रमहेत्वमिधानं ॥६॥ जीव अजीव आदि तत्त्वोंका भिन्न भिन्न कहनेका प्रयोजन बतला दिया गयाअब उनका व्युत्पत्ति, ९ लक्षण और जीवके बाद अजीव, अजीवके बाद आसूव इसप्रकारके क्रमके कहनेका कारण, बतलाया हैं जाता है। वह इसप्रकार है
त्रिकालविषयजीवनानुभवनाज्जीवः॥७॥
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