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________________ अध्याय सात ही प्रकार हैं अन्य कोई प्रकार नहीं हो सकता क्योंकि जिसप्रकार 'स्यादस्त्येवात्मा' इत्यादि सातों , भंगोंकी प्रवृचिका कारण भिन्न भिन्न सिद्ध है उसप्रकार सातसे अतिरिक्त भंगोंकी प्रवृतिका कारण सिद्ध है नहीं तथा यह जो सकलादेश विकलादेशरूप मार्ग है वह द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयोंके आधीन है। अर्थात् सकलादेश द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा है और विकलादेश पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा है । तथा वे 5 द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक संग्रह आदि नय स्वरूप हैं एवं वे संग्रह व्यवहार आदि नय अर्थनय और शब्दनयके भेदसे दोप्रकारके माने हैं। उनमें संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र ये तीन अर्थनये हैं और वाकांके अर्थात् शब्द समभिरूढ और एवंभूत ये तीन शब्दनय हैं। यहांपर संग्रह नय सत्तको ENCIESCHECK RANDOCAL% 25A १-इनका स्वरूप पहिले अध्यायमें नैगम संग्रह आदि सत्रमें विस्तृतरूपसे वर्णन कर पाये हैं। २-जहाँपर अर्थनय और शब्दनयके मेदसे नयोंका निरूपण किया गया है वहांपर नैगम संग्रह व्यवहार और सूत्र इन चार जयों को अर्थनय माना है और शेष तीन नयोंको शब्दनय माना है। भगवान अमृतचन्द्रसूरिने तरवार्थसारमें कहा है चत्वारोऽर्थनया आद्यास्त्रयः शब्दनया: परे । उत्तरोत्तरमत्रषां सूक्ष्मगोचरता मता ॥४३॥ प्रर्य-पहिले तीन द्रव्यार्थिकनय व पक जुसूत्र पर्यायार्थिकनय ये चार नय समस्त गुणविशिष्ट वस्तुओंको ग्रहण करते है इसलिये हैं ।इन्हे अर्थनय कहते हैं। यहाँ अर्थशन्दका अर्थ गुण है, आगेके तीन पर्यायार्थिकनय शब्द द्वारा अर्थको दिखाते हैं इसलिये वे शब्दनय हैं। मिल कर ये सर्व नय मात है। पर्यायार्थिक नयों की तरह सातों में उत्तरोत्तर विषयकी मर्यादा घटती हुई है। म०१ पृष्ठसंख्या ३७। भगवान विद्यानंदने भी श्लोवार्तिकमे लिखा है तत्रर्जुसूत्रपर्यंताश्चत्वारोऽर्थनया मतात्रयः शब्दनयाः शेषाः शब्दवाच्यार्थगोचराः॥८१॥ पृष्ठ २७४। अर्थ-जसूत्र पर्यंत अर्थात् नैगम संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र ये चार नय अर्थनय है तथा शेष तीन नय अर्थाः शब्द समभिरुढ और पवंभूत ये तीन नय शब्दके द्वारा प्रतिपादित अर्थको विषय करते है इसलिये शब्दनय है। 3GLUCLOSAIRRORSERIA 4 %Bite
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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