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________________ अध्याय SCAPSUCKSECRETROLARSHA वस्तुके स्वरूपका रंजायमान करनेवाला मानकर जहाँपर नरसिंह सिंडत्वके समान अनेक स्वरूप एकत्व (भिन्न भिन्न गुणस्वरूप द्रव्य) की व्यवस्था है अर्थात् जिसप्रकार नरसिंह और सिंह अनेकरूप सिंहत्व कहा जाता है उसीप्रकार अस्तित्व नास्तित्व आदि स्वरूप अनेक प्रकार वस्तु कही जाती है जहां ऐसी व्यवस्था है एवं काल आत्मरूपआदि जो ऊपर कारण बतलाआये हैं उनके द्वारा जहां एक अंशके विषयका दूसरे अंशमें आपसमें प्रवेश नहीं है ऐसे समुदायस्वरूप एक पदार्थका नाम विकलादेश है। किंतु केवल सिंहमें सिंहत्वके समान अखंड वस्तुके वस्तुत्वका स्वीकार विकलादेश नहीं क्योंकि यहां पर एक * स्वरूप एकत्वका ग्रहण है अर्थात् यहांपर एक स्वरूप-केवल सिंहमें, एकत्वस्वरूप-सिंहत्वके समान एक 5 स्वरूप-अखंडवस्तुमें, एकत्वस्वरूप वस्तत्वका ग्रहण है। अथवा पानक (शस्वत) खांड अनार कपूर आदि अनेक प्रकारके रसस्वरूप होता है उस पानकको चख६ कर और उसकी अनेक रसस्वरूपताका निश्चय कर फिर अपनी शक्तिकी विशेषतासे इसमें यह चीज पडी है, यह चीज पडी है इसप्रकार पदार्थों का विशेषरूपसे निरूपण करना विकलादेश है अर्थात् अनेक है रसस्वरूप पानकमें किसी एक रसके जान लेनेमे उसके,अविनाभावी समस्त रसोंका जान लेना सकला- एं र देश है और उसके रसोंको भिन्न भिन्नरूपसे जानना विकलादेश है। अथवा____ जो मनुष्य नराम्य वस्तुको स्वीकार कर विशेष विशेष हेतुओंकी सामर्थ्य से जो विशेष विशेष साध्योंका निश्चय करता है वह विकलादेश है अर्थात् किसी अखंडवस्तु के विशेष विशेष धर्मों का उल्लेख कर उनका निश्चय करना विकलादेश है। सारार्थ यह है कि-जहांपर अभेदसंबंध वा अभेद उपचारकी विवक्षा नहीं वहांपर एक धर्मस्वरूप वस्तुका जनानेवाला वाक्य विकलादेश है जिसपकार 'स्पादस्त्येव RECRUGSASTERSTAGEANCHPSS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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