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नास्तित्व आदिको अभेद नहीं सिद्ध हो सकता क्योंकि अर्थके भदमे शब्दोंका भेद माना गया है यदि MS
या अध्याय S|| समस्त गुणोंका वाचक एक शब्द मानी जायगा तो समस्त पदार्थोंका वाचक भी एक शब्द मानना (डोगी फिर अन्य अन्य जो भा शब्द मान गये हैं उनका मानना निरर्थक हैं इसतिस शब्दकी अपेक्षा
भी अस्तित्व नास्तित्व आदि धर्मोका अभेदसंबंध नहीं सिद्ध हो सकता। इसप्रकार पर्यायार्थिक नयको है अपेक्षा काल आदिके द्वारा भेद व्यवस्था है। 2. {} " " ".- aur " यह अवक्तव्य भंग भी सकलादेश भंग है क्योंकि यहां पर जिनका आपसमें भिन्नरूपसे अनेक
स्वरूप निश्चित है और जो गुणाके विशेषणरूपसे प्राप्त हैं ऐसे गुणोंके द्वारा जिसके अंशभेदोंकी कल्पना | विवक्षित नहीं है पैसो समस्त धर्मात्मक वस्तुका अंभेद संबंध वा अभेद उपचारसे कहने का प्रयोजन है
अर्थात् 'अवक्तव्य आत्मा यहॉपर केवले अवक्तव्यत्व धर्मके द्वारा अस्तित्व आदि अनेक धात्मक
वस्तुके कहने की इच्छा है। यह जो अवक्तव्य भंगी मानी है उसे स्यादस्ति आदि भंगोंके समान स्यादर वक्तव्य अर्थात् कथंचित् अवक्तव्य समझना चाहिये क्योंकि यद्यपि अस्तित्व नास्तित्व आदि धर्मों को एक हि साथ न कह सकने के कारण वह भंग अवक्तव्य है तथापि अवक्तव्य शब्दसे एवं अन्य छई भंगोंसे वह कही।
जा सकती है इसलिए उस अपेक्षासें वह वक्तव्य भी है। यदि कदाचित् स्यादवक्तव्य न मानकर उसे सर्वथा ।
अवक्तव्य माना जायगा तो सप्त भंगोंद्वारा जो बंध मोक्ष आदिकी प्रक्रियाका प्ररूपण किया गया है। जावई न हो सकेगा इसलिए उसे अन्य मंगों के समान स्यादवक्तव्य ही मानना युक्त है । इसप्रकार यह तीसरी भगीका उल्लेख है। तथा 1-
ht: HARYANA जिस समय अस्तित्व नास्तित्वको क्रमसे विवक्षा होगी उस समय स्यादस्ति नास्ति चौत्मा अर्थात्
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छानबीन