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________________ CIT - | है। इसलिये विद्वान और अल्पज्ञानी दोनों समझ लें। यहां पर जीव अजीव आदि पदार्थों का क्रमसे || MON || मध्यमरूपसे वर्णन किया गया है इसरीतिसे सब पदार्थ द्रव्यके ही भेद होते हैं इसलिये जीव अजीव १०३ आदि भेद न मानना चाहिये' यह कहना निर्मूल है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि जीवाजीवयोरन्यतरत्रैवांतर्भावादास्रवादीनामनुपदेशः॥२॥ न वा परस्परोपश्लेषे संसारप्रवृत्तितदुपरमप्रधानकारणप्रतिपादनार्थत्वात् ॥३॥ आस्रव संवर आदि जीवादिरूप हैं कि अजीव स्वरूप ? यदि जीव स्वरूप माने जायगे तो जीव के कहनेसे ही उनका ग्रहण हो जायगा उनका जता कथन करना व्यर्थ है। यदि अजीवस्वरूप मानेर है जांयगे तो भी उनका पृथकरूपसे वर्णन करना व्यर्थ है क्योंकि अजीवके कहनेसे उनका भी ग्रहण होई || जायगा इसलिये जीव और अजीव दो ही तत्व मानना ठीक है आसूत्र आदिका उल्लेख करना निरर्थका या है ? सो ठीक नहीं । जीव और अजीव तत्त्वों के आपसमें सम्बन्ध रहनेपर संसारकी प्रवृति और संबंध छूट जानेपर मोक्ष प्राप्त होती है। संसारकी प्रवृत्तिमें आसूव और बंध प्रधान कारण हैं। मोक्षमें संवर | और निर्जरा प्रधान कारण हैं इसलिये आसव आदि तत्वोंका जीव और अजीवमें अंतर्भाव होने पर । भी संसार और मोक्षमें प्रधान कारण होनेसे उनका जुदा जुदा उल्लेख किया गया है । जीव अजीव || आदि सातों तत्त्वोंका पृथक् पृथक रूपले उल्लेख इसप्रकार सार्थक है--इहां मोक्षमार्गका प्रकरण चल। रहा है । मोक्षमार्गका फल मोक्ष है इसलिये मोक्षका जुदा उल्लेख अवश्य करना चाहिये । मोक्ष की प्राप्ति जीवके ही होती है इसलिये जीवका भी जुदा उल्लेख करना आवश्यक है । मोक्षका अर्थ छटना-संसार , PIL का छूटना है' वह छूटना संसारके रहते ही होता है इसलिये मोक्षकी प्राप्ति संसारपूर्वक है । जीवका POPMEGHACHCARBONESCEBORRECTROGREEMEGAAAAAY छजनाकानजनकननवाSHESARG nawwamruarPawanv a
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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