SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ४ । SociOROASAREERSOOR . द्रव्यार्थिकनयकी प्रधानता और पर्यायार्थिकनयकी अप्रधानता रहनेपर 'स्वादस्त्येव जीवः' यह प्रथम भंग होता है । पर्यायार्थिकनयकी प्रधानता और द्रव्याथिकनयकी अप्रधानतामें 'स्थानास्त्येव जीव' यह दुसरा भंग है । जिस बातका शब्दके द्वारा उल्लेख किया गया है वह बात प्रधान मानी जाती है है यह यहाँपर प्रधानता ली गई है तथा जो बात शब्दसे नहीं कही गई है किंतु अर्थात् जानी जाती है | वह अप्रधान है यह यहॉपर अप्रधानता है । 'स्वादस्त्येव जीवः' इस प्रथम अंगमें अस्तित्वकी प्रधानता है । | क्योंकि यहाँपर अस्तित्वरूप अर्थका प्रतिपादन करनेवाला अस्ति शब्द है ।. 'स्यान्नास्त्यंव जीवः' इस है| द्वितीय भंगमें भी नास्तित्वकी प्रधानता है क्योंकि नास्तित्वरूप अर्थका प्रतिपादन करनेवाला यहां नास्ति शब्द है। तीसरे अर्थात् 'स्यादवक्तव्यो जीवः' इस भंगमें एक साथ अस्तित्व नास्तित्वरूप अर्थका प्रति- हूँ पादन करनेवाला एक शब्द नहीं है इसलिए वहांपर दोनोंकी अप्रधानता है। चौथे भंगमें अर्थात् 'स्यादस्ति । नास्ति च जीवः' इस भंगमें अस्तित्व और नास्तित्व दोनोंकी प्रधानता है क्योंकि अस्ति शब्दसे अस्तित्व । रूप अर्थ और नास्ति शब्दमे नास्तित्वरूप अर्थ कहा गया है। उसीप्रकार आगेके भंगामें भी समझ ५/ लेना चाहिये । अर्थात् स्यादस्ति चावक्तव्यश्च अर्थात् कथंचित् जीव है और कथंचित् अवक्तव्य है यह | पांचवां भंग है यहांपर अस्ति शब्दका उल्लेख है इसलिए इसकी प्रधानता है और अवक्तव्य शब्दकी । अप्रधानता है क्योंकि अस्तित्व नास्तित्वरूप दोनों अौँका प्रतिपादन करनेवाला कोई एक शब्द नहीं । स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च अर्थात् कथंचित् जीव नहीं है और कथंचित् अवक्तव्य है यहांपर नास्ति शब्दका ।' | उल्लेख है इसलिए उसकी प्रधानता है और अवक्तव्य शब्दकी अप्रधानता है। स्यादस्ति नास्तिवावक्तव्यश्च - Rin अर्थात् कथंचित् जीव है भी, नहीं भी है और अवक्तव्य भी है यहां अस्ति और नास्ति शब्दका उल्लेख :
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy