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मध्यान
आदि अनेक अर्थ हैं परंतु यहां अनेकांत अर्थकी विवक्षा है इसलिये यहाँपर स्यात् शब्दका अनेकांत अर्थ ही लिया गया है । शंका
यदि स्यात् शब्दका अर्थ अनेकांत माना जायगा तो उसीसे सर्वधर्मात्मक पदार्थका ज्ञान हो जायगा फिर स्यादतात्यादि वाक्यों में आस्ति आदि पदोंका जो प्रयोग किया है वह व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं। * जिस तरह वृक्ष शब्दके उच्चारणसे सामान्यरूपसे वृक्षोंका ज्ञान हो जाता है तथापि यह धववृक्ष है यह
खदिरवृक्ष है यह आम्र वृक्ष है इसप्रकार विशेषरूपमे वृक्षोंके ज्ञानकेलिये धन आदि विशेष वृक्षोंका प्रति- है पादन निरर्थक नहीं उसीप्रकार अनेकांतवाचक स्यात् शब्दसे भले ही अनंतधर्मात्मक समस्त पदार्थों का
ज्ञान हो जाय तथापि यह विद्यवान है, यह आविद्यवान है, यह नित्य है, यह अनिस है इत्यादि विशेष ॐ रूपसे पदार्थों के जाननेके लिये विशेषरूपसे आस्तत्व आदि पदोंका उल्लेख निरर्थक नहीं । अथवा
निपात संज्ञक शब्दोंको द्योतक (प्रकट करनेवाला) और वाचक (कहनेवाला) दोनों प्रकारका हूँ माना है । 'स्यात्' यह भी निपात शब्द है इसलिये यह अनेकांत अर्थका द्योतक है तथा यह नियम है हूँ
कि वाचक शब्दोंका विनां उल्लेख किये द्योतक शब्द अभीष्ट अर्थका द्योतन करनेवाला नहीं हो सकता हूँ है इसलिये द्योतक शब्दसे जिन धर्मोंका द्योतन किया जाय उन धर्मोंके कहनेकेलिये दुमरे दूसरे वाचक है 0 शब्दोंका प्रयोग करना ही पड़ता है। यहांपर 'स्यात' शब्दको द्योतक माना है इसलिये आस्तित्व आदि १ धर्मोके द्योतन करने के लिये आस्तित्व आदि अाँके वाचक आस्तित्व आदि अन्य शब्दोंका प्रयोग करना ही पडेगा। यदि यहांपर यह कहा जाय किजब 'स्यात' निपातको द्योतक माना जायगा तो किस शब्दसे कहे हुए अनेकांत अर्थको स्यात् %
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