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________________ भाषा AAMSABHARASHTRA विषय करनेवाला वाक्य विकलादेश है, यह हम सकलादेश विकलादेशका लक्षण मानेंगे ? वह भी ठीक नहीं, क्योंकि अस्तित्व आदि किसी भी धर्मके विना धर्मीका ज्ञान नहीं होता अर्थात् किसी न किसी धर्मसहित ही धर्मीका शाब्दबोध भान होता है, धर्मरहित धर्मीमात्रका नहीं, इसलिये धर्मोंके बिना केवल धर्मीको विषय करनेवाला वाक्य कभी सकलादेश नहीं कहा जा सकता तथा अस्तित्व आदि धर्मों के आधार स्वरूपधर्मीका बिना उल्लेख किये केवल धर्मका ज्ञान होना बाधित है अर्थात् अपने आधार 18 र स्वरूप धर्मीके साथ साथही धर्मोंका ज्ञान हो सकता है । इस लिये सकलादेश और विकलादेशके जो ये लक्षण किये गये हैं वे भी ठीक नहीं। यदि यहांपर शंका की जाय कि• 'स्याजीव एव' अर्थात् कथंचित् जीव है, इस वाक्यमें किसी भी आस्तित्व आदि धर्मका उल्लेख न कर केवल जीव रूप धर्मीका ही उल्लेख किया है इस लिये यह केवल धर्मीको विषय करनेवाला वाक्य S! है तथा 'स्यादस्त्येव' अर्थात् कथंचित् है, यहाँपर किसी भी धर्मीको न कहकर केवल अस्तित्व अर्थका ही 3 || उल्लेख किया गया है इसलिये यह केवल अस्तित्व धर्मका कहनेवाला वाक्य है 'इसरीतिसे जब केवल ||5| धर्मीको विषयकरनेवाले और धर्मको विषय करनेवाले वाक्यका असंभव नहीं तब ऊपर जो सकला- ॥६] देश और विकलादेशके लक्षण कहे गये है वे यथार्थ हैं? सो ठीक नहीं। 'स्थाजीव एव' यह वाक्य केवल जीवरूप धर्मीका बोधक नहीं किंतु जीवत्वरूप धर्मविशिष्ट जीवरूप धर्मीका बोधक है तथा स्यादरत्येव यह वाक्य भी केवल अस्तित्वरूप धर्मका बोधक नहीं किंतु किसी धर्मीको अपना आधार मानकर उस सहित अस्तित्व धर्मका बोधक है इसरीतिसे जब केवल धर्मिबोधक वा केवल धर्मबोधक वाक्योंका होना ही असंभव है तब उपर्युक्त सकलादेश और विकलादेशके लक्षण यथार्थ नहीं हो ११५७ सकते । यदि यहां फिर यह शंका की जाय कि एRAEBASEASASARASTROPRABASASREP १४६ ।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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