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________________ जानेपर भी मोक्ष नहीं प्राप्त होती इसलिये भव्यजीवोंको काललब्धिके द्वारा मोक्ष प्राप्त हो जायगी। 9 अधिगमज सम्यग्दर्शनकी कोई आवश्यकता नहीं यह वात मिथ्या है । और भी यह वात है कि चौदनानुपपत्तेश्च ॥१०॥ जो केवल ज्ञानहीसे मोक्ष माननेवाले हैं वा केवल चारित्रहीसे वा ज्ञान चारित्र दोनोंसे अथवा ई ९ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनोंसे मोक्षकी प्राप्ति मानते हैं उनके शास्त्रमें यह कहीं नहीं है माना गया कि भव्यको काललब्धिसे मोक्षकी प्राप्ति होती है इसलिये काल मोक्षकी प्राप्तिमें कारण नहीं * हो सकता यदि समस्त मतके अनुयायी मोक्षकी प्राप्तिमें कालहीको कारण मानेंगे तो प्रत्यक्ष वा अनुः । * मानसे मोक्षके कारण निश्चित हैं वे सब विरुद्ध हो जायगे इसलिये मोक्षकी प्राप्तिमें काल किसीतरह कारण नहीं हो सकता। ___ तदित्यनंतरनिर्देशार्थ ॥ ११॥ इतरथा हि मार्गसंबंधप्रसंगः॥१२॥ हूँ तनिसर्गादधिगमाद्वा' इस सूत्रमें जो तत् शब्दका उल्लेख किया गया है वह थोडे ही पीछे वर्णन 3 हूँ किये गये सम्यग्दर्शनके ग्रहणकेलिये है अर्थात् निसर्ग और अधिगमसे सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है अन्य पदार्थ नहीं। यदि यहां पर यह कहा जाय कि समीपमें सम्यग्दर्शनका ही वर्णन है इसलिये सूत्रमें तत्शब्दके विना भी सम्यग्दर्शनहीका ग्रहण होगा अन्य पदार्थका नहीं, तत् शब्दका उल्लेख करना व्यर्थ ही है । सो ठीक नहीं। यदि उक्त सूत्रमें तत् शब्दका ग्रहण नहीं किया जायगा तो पासमें मोक्ष मार्गका भी वर्णन हो चुका है उसका भी इस सूत्रमें संबंध हो जायगा तब वह मोक्षमार्ग निसर्गमात्र 5 १०० स्वभावसे ही प्राप्त होता है यह अर्थ होगा तथा 'हम बहुत शास्रोंके विद्वान् हैं' इस बातकी प्रसिद्धिकी है CREENSATISHTRISANEERAPIECESSORISTISH-HIGHESTRACK
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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