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अध्याय
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ज्योतिषी देवोंकी उत्कृष्टस्थिति कुछ अधिक एक पत्यप्रमाण है यह कथन सामान्यरूपसे है परंतु भाषा | चंद्र आदि पांचों प्रकारके ज्योतिषियोंकी भिन्न भिन्न स्थिति क्या है ? यह नहीं जान पडता इसलिए
वार्तिककार उसका स्पष्टीकरण करते हैंचंद्राणां वर्षशतसहस्राधिकं ॥१॥ सूर्याणां वर्षसहस्राधिकं॥२॥शुक्राणां शताधिकं ॥३॥ वृहस्पतनिां
' पूर्ण ॥ ४॥ शेषाणामधं ॥५॥ नक्षत्राणां च ॥६॥ तारकाणां चतुर्भागः ॥७॥
चंद्रोंकी उत्कृष्टस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्यप्रमाण है । सूर्योंकी एक हजार वर्ष अधिक || एक पल्यप्रमाण है। शुक्रोंकी सौ वर्ष अधिक एक पल्यप्रमाण है । वृहस्पतियोंकी उत्कृष्टस्थिति एक पल्य | प्रमाण है। बाकीके बुध आदि ग्रहोंकी आधा पल्यप्रमाण है । नक्षत्रोंकी उत्कृष्टस्थिति आधा पल्यप्रमाण | है तथा तारकाओंकी उत्कृष्ट स्थिति पल्यके चौथे भागप्रमाण है।
तदष्टभागो जघन्योभयेषां ॥ ८॥ शेषाणां चतुर्भागः॥९॥ तारा और नक्षत्रों की जघन्यस्थिति पल्यके आठ भागों में से एक भागप्रमाण है तथा बाकीके सूर्य चंद्रमा शक्र आदिकी जघन्यस्थिति एक पल्यके चार भागों से एक भागप्रमाण है। सूत्रकार अब लोकांतिक देवोंकी स्थितिका प्रतिपादन करते हैं
'लोकांतिकानामष्टौ सागरोपमाण सर्वेषां ॥४२॥ ब्रह्मलोकके अंतमें रहनेवाले समस्त लोकांतिक देवोंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयु आठ सागरकी है
अष्टसागरोपमस्थितयो लोकांतिकाः॥१॥
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