SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द लेश्याओंसे तिर्यंच और मनुष्य गतिमें जाकर जन्म धारण करते हैं। किस किस लेश्याका कौन कौन परास्वामी है, यह निरूपण किया जाता है MP : रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा दोनों भूमियों में रहनेवाले नारकी कपोत लेश्याके धारक हैं। बालुका११०९प्रभा नामक नरकभूमिके रहनेवाले नारकी नील और कपोत लेश्याके धारक हैं। पंकप्रभा नामक नरक 8 भूमिके रहनेवाले नारकी नील लेश्याके धारक हैं। धूमप्रभा नामक नरकभूमिके रहनेवाले नारकी कृष्ण 8 और नील लेश्याके धारक हैं। तमःप्रभा नामक नरक भूमिके रहनेवाले नारकी कृष्ण लेश्याके धारक और महतमःप्रभाभूमिमें रहनेवाले नारकी परम कृष्ण लेश्याके धारक हैं। . भवनवासी व्यंतर और ज्योतिषी देव कृष्ण नील. कपोत और तेज लेश्याओंके धारक हैं। एकेंद्रिय है दोइंद्रिय तेइंद्रिय और चौइंद्रिय जातिके जीव संक्लिष्ट तीन लेश्या अर्थात् कृष्ण नील कपोत इन तीन I लेश्याओंके धारक हैं। असैनी पंचेंद्रिय तिर्यंच संक्लेशस्वरूप चार लेश्या अर्थात् कृष्ण नील कापोत और पति इन चार लेश्याओंके धारक हैं। सैनी पंचेंद्रिय तिथंच मनुष्य, मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि । सम्यगमिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि कृष्ण नील आदि छहो लेश्याओंके धारक हैं। संयंतासंयत या प्रमचसंयत अप्रमचसंयत ये तीन शुभ लेश्याओंके धारक हैं । अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थानको आदि लेकर सयोग केवली नामक तेरहवें गुणस्थान तकके जीवोंके एक केवल शुक्ल लेश्या ही होती है। तथा अयोगकेवली भगवान अलेश्य हैं-कृष्ण आदि छहों लेश्याओमसे उनके कोई भी लेश्या नहीं होती। सौधर्म और ऐशान स्वर्गों में रहनेवाले देवोंके तेज (पीत) लेश्या होती है। सानत्कुमार और माहेंद्र ESSABARABASASURAR RECERPURIORNSORBA 10
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy