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अनंत भाग वृद्धिका अर्थ सर्व जीवराशि रूप अनंतभाग वृद्धि है। असंख्येय भाग वृद्धिका अर्थ असंख्येय लोकभाग वृद्धि है। संख्येय भाग वृद्धिका अर्थ उत्कृष्ट संख्येय भाग वृद्धि है। संख्येयगुण वृद्धिका अर्थ उत्कृष्ट संख्येय गुण वृद्धि है। असंख्येय गुण वृद्धिका अर्थ असंख्येय लोकगुणवृद्धि है।
अनंतगुणवृद्धिको अर्थ सर्व जीवराशि प्रमाण रूप अनंतगुणवृद्धि हैं। कृष्ण आदि लेश्याओंके कार्यकी है व्यवस्था इसप्रकार है
जंबूफल (जमुनी) खानेका लक्ष्य कर जहाँपर स्कंध (पीड नीचेकी जड) विटप (गुद्दे ) शाखा (बडी) अनुशाखा (डालियां) और पिंडिका (गुच्छा) को काटकर फल खानकी वा अपने आप ही पडे हुऐ फल खानकी इच्छा करते हैं वहांपर कृष्ण आदि लेश्याओंकी प्रवृचि है अर्थात्
___ कृष्ण आदि छह लेश्याओंके धारक छह मनुष्य किसी जमुनीके वृक्षके नीचे गये । वृक्षपर जमु. हूँ नीके फल पके हुऐ थे इस लिये जो मनुष्य कृष्ण लेश्याका धारक था उसका तो यह परिणाम हुआ कि हूँ| इस वृक्षको जडसे काटकर जमुनी फल खाने चाहिये तदनुसार वह कुल्हाडी लेकर उसका स्कंध काट
नेके लिए उद्यत होगया जो मनुष्य नील लेश्याका धारक था उसका यह परिणाम हुआ कि स्कंधके काटनेकी कोई आवश्यकता नही बडे बडे गुद्दे काटकर उन्हें जमीनपर डालकर जमुनी फल खाने चाहिये तदनुसार वह बडे बडे गुद्दोंके काटनेका प्रयत्न करने लगा। जो मनुष्य कापोत लेश्याका धारक था उसका परिणाम ऐसा हुआ कि स्कंध और बडे बडे गुद्दोंके काटनेकी कोई आवश्यकता नहीं
१-अनंत अनेक प्रकार है, यहां पर निस अनंतको भाग देकर वृद्धि और हानि एवं गुण रूपसे अनंतकी वृद्धि हानि ली गई है वह अनंत, सर्व जीवराशि प्रमाण अनंत लेना चाहिये । इसीप्रकार असंख्यातका परिणाम-असंख्यात लोक प्रमाण है।
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