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अध्याय
सौधर्म स्वर्गके देवोंका है उससे ऊपर ऊपरके स्वर्गों में रहनेवाले देवोंमें अनंतगुणा है परंतु उनके अभि. मानकी मंदता है और किसीसे किसी प्रकारका उनके परिणामोंमें संक्लेश भी नहीं होता इसलिए वे 5 किसीका निग्रह आदि नहीं करते । सुख आदिकी भी ऊपर ऊपर अधिकता है। लेश्याकी विशुद्धिका वर्णन आगे किया गया है। यहांपर जो लेश्या शब्दका उल्लेख किया गया है उसका खास तात्पर्य यह है कि जहांपर लेश्याओंकी समानता है वहांपर भी कर्मोंकी विशुद्धि अधिकाधिक है ॥२०॥ . ___पहिले पहिले स्वर्गोंके देवों की अपेक्षा फार ऊपर के स्वर्गों के देव जिसप्रकार स्थिति आदिपे अधिक है । अधिक हैं उसीप्रकार क्या गति शरीर आदिसे भी अधिक अधिक हैं ? सूत्रकार इस शंकाका समाधान देते हैं
गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः॥२१॥ गमन, शरीरकी ऊंचाई, परिग्रह और अभिमान इन विषयों में ऊपर कारके देव हीन हैं।
देशांतरप्राप्तिहेतुर्गतिः॥१॥ वाह्य और अंतरंग दोनों प्रकारके कारणों से जो शरीरके भीतर हलन चलनका उत्पन्न होना है है इसीका नाम गति है।
शरीरमुक्तलक्षणं ॥२॥ ____ औदारिक वैक्रियिक आहारक तेजस और कार्मण इन पांच शरीरोंका पीछे जो वर्णन किया गया ह वहांपर शरीर शब्दकी व्याख्या कर दी गई है।
BARSAMRORISTORIERer.