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लेझ्याशब्द उक्तार्थः॥५
अध्याय 1 , कृष्ण नील कापोत पीत पद्म और शुक्ल ये छह भेद लेश्याओंके ऊपर कह दिये गये हैं। लेश्या १०८७|| शब्दका अर्थ भी कह दिया गया है। लेश्याओंकी जो विशुद्धता हो उसका नाम लेश्याविशुद्धि है।
इंद्रियावधिभ्यां विषयाभिसंबंधः॥६॥ इतरथा हि तदाधिक्यप्रसंगः॥७॥ सूत्रमें जो विषय शब्द है उसका इंद्रिय और अवधि दोनोंके साथ संबंध है । इंद्रियं च अवधिश्च, Pil इंद्रियावधी तयोर्विषयः, इंद्रियावधिविषयः, यह इंद्रियावधिविषय शब्दकी व्युत्पचि है। अर्थात् आगेआगेके || . देवों में इंद्रियों और अवधि ज्ञानका विषय अधिक अधिक है। यदि विषयके साथ इंद्रिय शब्दका संबंध | नहीं किया जायगा तो आगे आगे स्वर्गाके देवोंमें इंद्रियां अधिक अधिक हैं यह अनिष्ट अर्थ होगा जो |७|| || कि शास्त्रविरुद्ध होनेसे अनिष्ट है इसलिये विषय शब्दके साथ इंद्रिय शब्दका संबंध इष्ट है । विशेष सार-1॥
सौधर्म और ऐशान स्वगाके देवोंकी स्थिति कुछ अधिक दो सागर प्रमाण है । सानत्कुमार और माहेंद्र देवोंकी स्थिति कुछ अधिक सात सागरकी है इस प्रकार पहिले पहिले स्वर्गों की अपेक्षा आगे
आगेके स्वर्गों में रहनेवाले देवोंकी स्थिति अधिक अधिक है। जो पहिले दूमरे स्वगोंके देवोंका प्रभाव है। उससे अधिक तीसरे चौथे स्वगोंके देवोंका है उससे अधिक पांचवे छठे स्वों के देवोंका है इत्यादि रूपमे प्रभाव भी उत्तरोत्तर देवोंका अधिक है। सुख और कांति भी पहिले पहिले स्वर्गोंके देवोंकी अपेक्षा
आगे आगेके स्वर्गोंके देवोंमें अधिक है । सौधर्म और ऐशान स्वौके देवोंके पीत लेश्या है। सानत्कुमार | और माहेंद्र देवोंक पीत और पद्म दोनों लेश्या हैं । ब्रह्म लोक और ब्रह्मोचर लांतव और कापिष्ठ |
१-कषायानुरंजिता योगप्रवृत्चिलेश्या ।
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PREMIER-CANCERSQUAGEBACHESPEECRASNA
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