SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1086
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REGISTRICTURISTRICKSTRORISote ऊ अणिबद्ध विमान हैं। गरुड नामक विमानकी चारो दिशाओंमें अट्ठाईस अट्ठाईस श्रेणिबद्ध विमान हैं। 5 लांगल नामक विमानकी चारो दिशाओं में सचाईस.सचाईस श्रेणिबद्ध विमान हैं। वलभद्र नामक विमा9 नकी चारो दिशाओंमें छब्बीस छब्बीस श्रेणिबद्ध विमान हैं। एवं चक नामक विमानकी चारो दिशा६ ओंमें पच्चीस पच्चीस श्रेणिबद्ध विमान हैं। इन विमानोंका आपसमें अंतर बहुतसे लाख योजनोंका है । र अर्थात् अंजन नामक इंद्रक विमानसे ऊपर बहुतसे लाख योजनोंके अंतरसे वनमाल नामका विमान है । ९ वनमालके ऊपर बहुतसे लाख योजनों के अंतरसे नाग नामका इंद्रक विमान है इसीप्रकार आगे भी है समझ लेना चाहिये। चक्र नामक अंतिम इंद्रक विमानकी दक्षिण दिशाके पचीस आणबद्ध विमानों से पंद्रहवे श्रेणिबद्ध विमानकी कल्पसंज्ञा है। इसका कुल वर्णन सौधर्म स्वर्गके कल्प विमानके समान समझ लेना चाहिये। उस पंद्रहवें श्रेणिबद्ध विमानका स्वामी सानत्कुमार नामका इंद्र है। उसके वराह लाख विमान हैं। तेतीस त्रायस्त्रिंश देव हैं। वहचर हजार सामानिक देव हैं। तीन सभा हैं । सातप्रकारकी सेना है।बह६ चर हजार आत्मरक्षक देव हैं और चार लोकपाल हैं। तथा जिस प्रकार सौधर्म इंद्रकी आठ पट्टदेवियां कह आये हैं उसीप्रकार सानत्कुमार इंद्रकी भी आठ पट्टदेवियां हैं और उनमें प्रसेक पट्टदेवीको नौ नौ पल्यकी आयु है । इन आठो पट्टदेवियोंमें प्रत्येक अठारह अठारह हजार देवियोंसे वेष्टित हैं और हर एक अपने विक्रियाबलसे बचीस बचीस हजार देवियोंके रूप धारण करनेमें समर्थ है। सानत्कुमार इंद्रकी आठ पट्टदेवियोंके सिवाय आठ हजार वल्लमिका देवियां भी हैं तथा उनकी आयु भी नौ नौ पल्यकी है और प्रत्येक बचीस हजार देवियोंका अपनी.विक्रियासे रूप धारण कर सकती है।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy