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________________ BREALISAR G ISTRISHTHALEGETAKISTASSISTRE किसीप्रकारका दोष नहीं वही बात मानना ठीक है। स्वर्गोंका ऊपर २ अवस्थान माननेमें कोई दोष नहीं इसरीतिस देव और विमानोंका ऊपर ऊपर अवस्थान बाधित होनेसे स्वर्गोंका ही ऊपर ऊपर अवस्थान सुनिश्रित है। यदि कदाचित् यहांपर यह शंका की जाय कि उपसर्जनत्वादनभिसंबन्ध इति चेन्न दृष्टत्वात् ॥५॥ 'उपर्युपरि' यहाँपर कल्पशब्दका संवन्ध इष्ट माना गया है। परन्तु जो पदार्थ गौण होता है उस-3, का संबन्ध नहीं हो सकता। कल्पोपपन्न इतना एक समासांत पद है। यहांपर कल्प शब्द गौण है इसलिये 'उपर्युपरि' इस सूत्रों कल्प शब्दका संबंध नहीं हो सकता ? अर्थात् कल्पोपपन्न यहाँपर कल्पों में | उपपन्न-उत्पन्न होनेवाले देव तो मुख्य हैं और कल्प-पटल गौण हैं इसलिये देवोंका संबन्ध सिद्ध होता है सो ठीक नहीं। बुद्धिसे अपेक्षित गौणरूप पदार्थका भी विशेषणके साथ संबन्ध देखा जाता है जिसतरह यह राजपुरुष किसका है ? यहांपर किस राजाका है यह समझा जाता है अर्थात् यहॉपर यद्यपि राज पुरुष इतना समासांत एक पद है इसलिये राजन शब्द गौण है तथापि बुद्धिसे आक्षिप्त और समीप ६ होनेसे उसका संबन्ध किसका के साथ हो जाता है उसीप्रकार 'कल्पोपपन्न यहांपर भी कल्प शब्द गौण | है तो भी बुद्धिसे आक्षिप्त और समीप होनेसे उसका 'उपयुपरि', यहांपर संबंध हो जाता है इसलिये ऊपर |६|| | ऊपर कल्प हैं यह अर्थ निर्दोष है। । जहांपर कल्पोपपन्न देवोंके विषयमें कहना हो वहां तो उपर्युपरि' यहांपर कल्प शब्दका संबंध कर कल्प (पटल) ऊपर ऊपर हैं यह अर्थ समझ लेना चाहिये और जहांपर कल्पातीत देवोंके विषयमें कहना ||२०४४ | हो वहांपर विमानका संबंध कर कल्पातीत विमान ऊपर ऊपर हैं यह अर्थ समझ लेना चाहिये। .
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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