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अप्पाक
धरा भाषा
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गतिमज्योतिःप्रतिनिर्देशार्थ तद्वचनं ॥१॥ सूत्रों जो तत् शब्दका उल्लेख किया गया है वह गतिमान ज्योतिषियोंके ग्रहणार्थ है । केवल गति | | क्रियाके आधीन कालका निर्णय नहीं हो सकता क्योंकि गतिकी अनुपलब्धि है नेत्रसे नहीं दीख | पडती । केवल ज्योतिषियोंसे भी कालका निश्चय नहीं हो सकता क्योंकि गतिक्रियारहित केवल ज्योतिषियोंको परिवर्तन राहत-स्थिर माना जायगा। स्थितिशील ज्योतिषियोंसे कालका निर्णय नहीं हो सकता। इसलिए कालके निश्चयमें गतिमान ज्योतिषो ही असाधारण कारण हैं । उन्हींसे कालका निर्णय होता है। A: व्याहारिक और मुख्यकालके भेदसे काल दो प्रकारका है। व्यवहार कालकी उत्पत्ति गतिमान |
ज्योतिषियोंके आधीन है । वह समय आवली घडी पल घंटा दिन आदिस्वरूप कहा गया है । तथा वह विशेष क्रियाओंसे जाना जाता है एवं मुख्य कालके ज्ञानका कारण है अर्थात् व्यवहार कालके आधीन ही मुख्य कालकी सिद्धि मानी जाती है । इस व्यवहार कालसे भिन्न दूसरा मुख्य काल है। उसका विशेष आगे पंचम अध्यायमें किया जायगा। शंका
सूर्य चंद्रमा आदिकी गतिसे भिन्न अन्य कोई मुख्यकाल नामका पदार्थ नहीं किंतु वह सूर्य आदिकी गतिस्वरूपं ही है क्योंकि मुख्यकाल कोई पदार्थ है ऐसा सिद्धि करनेवाला कोई भी निर्दोष हेतु नहीं है। तथा कलाओंके समूहका नाम काल है। कला क्रियाओंके अवयव हैं इसरूपसे भी मुख्यकाल कियास्वरूप ही पड़ता है, भिन्न पदार्थ नहीं। तथा जहाँपर पांच अस्तिकायोंका वर्णन किया गया है वहांपर जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन पांच ही अस्ति
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