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। ऐसा सूत्र बनाया जायगा तो भवनवासी व्यंतर और ज्योतिष्क इन तीनों प्रकारके देवोंके पीतपर्यंत है लेश्या होती है यह अभीष्ट अर्थ सिद्ध न हो सकेगा क्योंकि 'त्रिनिकाया" ऐसे कहनेपर मध्य और
अंतकी भी तीन निकायोंका ग्रहण हो सकता है यदि "आयेषु पीतांतलेश्या" ऐसा सूत्र बनाया जायगा B| तब भी अभीष्ट अर्थ न सिद्ध होगा क्योंकि आदिके निकायमें जो देव होनेवाले हों वे आद्य कहे जायगे. इसलिए आद्य पदसे भवनवासी आदि तीन निकाय नहीं लिए जा सकते जैसा सूत्र है वही उपयुक्त है। भवनवासी आदि निकायोंके अंतर्भेद प्रतिपादन करनेकेलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं
दशाष्टपंचबादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यंताः॥३॥ कल्पवासी पर्यंत इन चारो प्रकारके देवोंके क्रमसे दश आठ पांच और वारह भेद हैं। अर्यात दश है प्रकारके भवनवासी, आठ प्रकार के व्यंतर, पांच प्रकार के ज्योतिष्क और बारह प्रकार के कल्पोपपन्न वा * कल्पवासी देव हैं।
चतुर्णा दशादिमिर्यथासंख्यममिसंबंधः ॥१॥ भवनवासी आदि चारो निकायोंका दश आदि संख्या शब्दोंके साथ यथासंख्य संबंध है । इस यथासंबंधसे दश प्रकारके भवनवासी, आठ प्रकारके व्यंतर, पांच प्रकारके ज्योतिषी और बारह प्रका. रके वैमानिक देव हैं यह स्पष्ट अर्थ है । कल्पवासी देवः वैमानिक देव कह जाते हैं। कलवासियोंक हूँ वारह भेद कहे गये हैं इसलिये समस्त वैमानिक देवों का बारह भेदों में ही अंतर्भावकी शंका होने पर उस है शंकाकी निवृचिकलिये वार्तिककार कहते हैं
कल्पोपपन्नपर्यंतवचनं अवेयकादिव्युदासार्थ ॥२॥
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