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________________ सकरापापा A - काल द्रव्यको समस्त पदार्थोकी उत्पचिमें निमित्त कारण माना है। और वह अशरीर पदार्थ है। अध्याय 8. यदि यह माना जायगा कि जो निर्देह होता है वह जगतका निमित्त कारण नहीं होता तो निर्देह|| शरीररहित तो काल द्रव्य भी है, वह भी जगतका कारण न माना जायगा इसलिये 'ईश्वर जगतका | कारण नहीं क्योंकि वह निर्देह है इस अनुमानमें जो निर्देहत्वरूप हेतु है वह अलक्ष्यस्वरूप काल द्रव्यमें भी घट जानेसे व्यभिचार दोषग्रस्त है । सो ठीक नहीं । निर्देह शब्दसे इस अनुमानमें विशिष्टपुरुष महे-से | श्वरका ग्रहण है इसलिये निर्देह शब्दका अर्थ यहां शरीररहित विशिष्ट पुरुष लेना चाहिये । समस्त कार्योंकी उत्पत्तिमें निमित्त काल द्रव्य यद्यपि शरीररहित है परंतु वह विशिष्ट पुरुष नहीं। दूसरी वात | l यह है कि काल द्रव्य किसी वस्तका निर्माता नहीं है किंत केवल उदासीन कारण है, उदासीन कारणसे ॥६ । सृष्टि आदि किसी पदार्थ की रचना नहीं की जासकती, रचना करनेमें बुद्धिमान ही समर्थ है । यद्यपि | जडपदार्थोंके क्रिया परिणामसे भी कार्य हो जाते हैं परंतु यहां पर कार्य करनेरूप प्रवृति ज्ञानपूर्वक ली जाती है इसलिये उसकी अपेक्षा निर्देहत्वरूप हेतु व्यभिचरित नहीं हो सकता। अत: ईश्वरको जगतके कर्तृत्वका अभाव सिद्ध करनेवाला उपर्युक्त अनुमान अप्रतिहत है किसी भी प्रमाणसे वाधित नहीं हो। सकता । और भी यह बात है कि ___अनित्यज्ञानवान होकर भी ईश्वर जान कर समस्त जगतका उत्पादक है इसलिये वह जगतकी | ॥ उत्पचिमें निमिच कारण है। मुक्तात्मामें ज्ञानका अस्तित्व नहीं इसलिय जान कर वह किसी भी पदार्थ || 15 का उत्पादक कारण न होनेसे जगतका निमिच कारण नहीं हो सकता-ऐसा बहुतसे लोग मानते हैं | ९११, उनका यह सिद्धान्त भी खडित है क्योंकि जो वादी इस वातको माननेवाले हैं उनके मतमें शरीररहित ECIALISTRICKAGARN ASSAKASGRESOREX
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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