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की सिद्धि होती है इसलिये यहां पर 'तत्' शब्द प्रकृति है और उससे भाव अर्थमें त्व प्रत्यय किया गया है । तत् शब्द जिस अर्थको कहे वह भाव कहा जाता है । यहां सर्वनाम होनेसे तत् शब्द सभी अर्थों का प्रतिपादन करता है इसलिये सब अर्थोंका नाम यहां भाव है । तथा तत् शब्द सभी अथका प्रतिपादन करता है उसकी अपेक्षा यहां भावका अर्थ भावसामान्य है । इस रीति से जो शब्द जिस रूप से स्थित है | उसका उसी रूपसे होना तत्व कहा जाता है । उसी सूत्र में तत्वार्थ शब्दका अर्थ यह हैतत्वेनार्यत इति तत्वार्थः ॥ ६ ॥
जो जाना जाय-ज्ञानका विषय हो वह अर्थ है और जो पदार्थ जिस रूप से स्थित हो उसका उसी रूपसे ज्ञानका विषय होना तत्वार्थ है । इस रीति से जिसके द्वारा -जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उस का उसी रूपसे श्रद्धान हो वह सम्यग्दर्शन कहा जाता है ।
श्रद्धानशब्दस्य करणादिसाधनत्वं पूर्ववत ॥ ७ ॥
धातुसे युद्ध प्रत्यय करनेपर जिस तरह दर्शन शब्दकी सिद्धि ऊपर कह आए हैं उसीप्रकार श्रुत् अव्यय पूर्वक धारणार्थक 'धा' धातुसे युट् प्रत्यय करनेपर श्रद्धान शब्द की भी सिद्धि समझ लेनी चाहिये । सत्वात्मपरिणामः ॥ ८ ॥
करण वा कर्ता आदि संज्ञाओंका धारक वह श्रद्धान शब्दका वाच्य अर्थ आत्माका परिणाम है । यदि यह शंका की जाय कि
वक्ष्यमाणनिर्देशादिसूत्रविवरणात्पुद्गलद्रव्य संप्रत्यय इति चेन्नात्मपरिणामेऽपि तदुपपत्तेः ॥ ९ ॥ - इसी अध्याय में आगे निर्देशस्वामित्व आदि सूत्रों का उल्लेख है और निर्देश आदि पुद्गल द्रव्यमें
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