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१३ प्रतिष्ठित विद्वान् भी स्वामीजी के भाप्यको प्रमाणशून्य मनःकल्पित समझते हुए अनादरकी दृष्टिसे देखते हैं! स्वामी दयानंद: और आजकल के विद्वानोंमें से निष्पक्ष और, सत्यवक्ता. कौन है ? इसका पता लगाना इतना ही कठिन है- जितना कि...
गाढ़ अंधकार में पड़ी हुई, सूक्ष्म वस्तुका । परंतु इस प्रकार इन.. का परस्पर दंगल - करानेसे कुछ परिणाम निकले ऐसी अभी.. आशा नहीं | इस लिये इस विपयपर सप्रमाण अपने विचारोंकों विशेषरूपसे हम कहीं अन्यत्र प्रदर्शित करेंगे ।
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वेदोंके न माननेवालों के बारेमें " सच तो यह है " इत्यादि लेखने स्वामीजी महाराजने जो उदारता दिखलाई है वह, मध्यस्थ वर्गको अवश्य स्मरण रखने योग्य हैं ! वेदोंपर श्रद्धा ने रखनेवालेको " स्वामीजी " एक तो यह आशीर्वाद देते हैं कि, " वह सुखके बदले दारुण जितना दुःख पावे उतना न्यून है " दूसरी आज्ञा उसके लिये यह है कि " उसको जाति पंक्ति से निकालकर जिला वतन ( देशपार ) कर दिया जावे " यद्यपि स्वामीजी महाराजकी इस न्याय प्रियता के संबंध में विशेष कहते हुए हमे संकोच होता है, परंतु इतना तो कहे बिना नहीं रहा जाता कि, यदि स्वामी " दयानंद सरस्वती के हाथमें कोई सत्ता होती तो बिचारे वेदोंके न माननेवालोंको वही सौभाग्य प्राप्त होता जो कि स्वामी शंकराचार्यजी के समय में सुधन्वा राजाके द्वारा बौद्धों को प्राप्त हुआ था ! " स्वामी जी" की शिक्षानुसार महमूद गजनवी ने यदि भगवान सोमनाथ मंदिरको तोडा तो क्या बुराई की ? यवन राज औरंगजेबने तलवार के जोरसे यदि हिंदुओं को मूसलमान बनाया तो क्या बुरा किया ? क्योंकि, वे (हिंदु ) यवनधर्म,
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