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१२० ...१) विवेकसार पृ. २२८" एक जैन मतका साधु कोशी
वेश्यासे भोग करके: पश्चात्. त्यागी होकर स्वर्ग
लोकको गया। (२) विवेकसार पृष्ठ १० " अर्णक मुनि चारित्रसें चुक
कर कई वर्ष पर्यंत दत्त सेठके घरमें विषयः भोंगा करके पश्चात्: देव लोकको गया " " श्री कृष्णके पुत्र ढंढण मुनिको स्यालिया उठा ले गया पश्चात
देवता हुआ"॥ (३) विवेक. पृ. १५६. " जैनमतका साधु लिंगधारी
अर्थात् वेशधारी मात्र हो तो भी उसका सत्कार श्रावक लोग करें चाहे साधु-शुद्ध चारित्री हो चाहे
अशुद्ध चारित्री सब पूजनीय हैं " ॥ (४) विवेक. पृ. १६८ " जैनमतका साधु चारित्र हीन
हो तो भी अन्यमतके साधुओंसे श्रेष्ट है"। (५) विवेक. पृ. १.७१ " श्रावक लोग जैन मतके साधु
ओंको चारित्र रहित भ्रष्टाचारी देखें तो भी उनकी
सेवा करना चाहिये "* (६), विवेक. पृ. २५६ " एक चोरने पांच मुठी लोच
कर चारित्र ग्रहण किया बड़ा कष्ट और पश्चात्ताप किये छठे महीने में केवल ज्ञान पाके सिद्ध हो गया" (समीक्षक ) अब देखिये इनके साधु और गृहस्थों की लीला इनके मंतमें बहुत कुकर्म करनेवाला साधु
भी मोक्षकों गया। (७) विवेक. पृ. १०६ में लिखा है कि कृष्ण तीसरे
नरकमें गया (समीक्षक) भला कोई बुद्धिमान पुरुष यहःपाठ विवेकसारमें हमारे देखनेमें नहीं आया।
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