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सुबोध जैन पाउमाला- भाग २ अहो-कायं
: आपके (दोनो)चरणों का मैं अपने काय-सफासं : मस्तक और हाथो से स्पर्श करता हूँ। खमरिगज्जो, भे : क्षमा करे, जो आपको किलामो
: (मेरे स्पर्श से) क्लामना हुई। अप्पाकलंतारणं : बिना देहग्लानि रहे। १ बहु सुभेणं : बहुत शुभ (सयमी क्रियाओ) से भे दिवसो वइक्कन्तो . आपका दिन बीता ? २ जत्ता भे? : आपकी (सयम) यात्रा (निधि) है? ३ जवरिगज्जं च भे? : और आपका शरीर व इन्द्रियाँ
स्वस्थ हैं ? खामेमि
: खमाता हूँ (क्षमा-याचना करता हूँ) खमासमरणो ! . हे क्षमा-श्रमण । देवसिन वइक्कम : दिन सम्बन्धी अपराध को ।। प्रावस्सियाए : अापकी परिमित भूमि से बाहर पडिक्कमामि
निकलता हूँ (और खडे होकर)
अाशातना की क्षमा-याचना व प्रतिक्रमण
खमासमगारणं देवसियाए प्रासायरगाए
: पाप क्षमा-श्रमण की : दिन सम्बन्धी : पाशातना द्वारा
रामि प्रतिक्रमरा मे 'राइवइपकता' पाक्षिक 'प्रतिक्रमण' मे दिवसो परलो यदक्कतो', चातुमासिक प्रतिक्रमण मे एकबाले 'दिवसो वडवकतो चासम्मास यइरकत' दो वाले दूसरे में मात्र 'चाउम्मास बहरकत' सांवत्सरिक प्रतिक्रमण मे एक वाले दिवसो समच्छरो वरुन्तो' तथा दो वाले वृसरे से मात्र 'संवञ्चरो वइक्कतो' कहें।