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________________ तत्त्व-विभाग-'पांच समिति तीन गुप्ति का स्तोक' [ २६६ मरने की सभावना नही रहती। २ अपने शरीर पर भी अकस्मात् चोट पहुँचने की सभावना नही रहती तथा वायुकाय की अयतना नही होती। । २. क्षेत्र से-भाण्डादि उपकरण इधर उधर बिखरा हुप्रा न रक्खें तथा गृहस्थी के घर पर भी न रखें। उपकरणो को इधर उधर बिखरा हुआ रखने से १. उनमे शीघ्र जीव प्रवेश की सम्भावना रहती है, २. पैरो से वार-वार अयतना का प्रसग प्राता है तथा ३. अधिक स्थान की आवश्यकता पडती है, इत्यादि कई दोषो के वर्जन के लिए तीर्थंकरो ने उपकरणो को बिखरे हुए रखने का निषेध किया है। गृहस्थ के घर उपकरण रखने से साधुता मे ममता, प्रमाण उपरात परिग्रह और गृहस्थ वृत्ति उत्पन्न होने की आशका रहती है, इत्यादि कई कारणो से तीर्थंकरो ने गृहस्थो के घर पर रखने का निषेध किया है। ३. काल से-सभी उपकरणों की यथा समय उभयकाल प्रतिलेखन करें। रात्रि मे जोवो को हुई विराधना की आलोचना के लिए तथा उपकरण में प्रविष्ट हुए जीवो की रक्षा के लिए प्रातः काल सूर्योदय होने के पश्चात् प्रतिलेखना करे तथा दिन मे हुई विराधना की आलोचना के लिए तथा प्रविष्ट जीवो की रक्षा के लिए सूर्यास्त होने के पहले प्रतिलेखन करे। ४. भाव से-राग द्वेष उत्पन्न करने वाली उपधि तथा प्रमारण उपरांत उपधि न रक्खे और प्रमाणोपेत उपधि को रॉगद्वेष रहित तथा उपयोग सहित भोगे । १. बहुमूल्य, २. श्वेत वर्ण को छोडकर अन्य वर्ण वाले, ३. धातु-निर्मित आदि उपकरण रागद्वेष उत्पन्न करने मे निमित्त हैं। अतः इन उपकरणो को रखने का निषेध किया है।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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