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सूत्र - विभाग - १. प्रवेश प्रश्नोत्तरी
[ S उ० : हॉ, कृष्ण और शुक्ल पक्ष के अन्त मे अर्थात् अमावस्या और पूर्णिमा ( कभी - कभी चतुर्दशी) के दिन के अन्त मे, वर्षा, शीत और उष्णकाल के चातुर्मास के अन्त मे अर्थात् कार्तिक पूर्णिमा, फाल्गुनी पूर्णिमा और श्राषाढी पूर्णिमा ( कभीकभी चतुर्दशी) के दिन के अन्त मे तथा सवत्सर (वर्ष) के अन्त मे अर्थात् भाद्रपद शुक्ला पंचमी ( कभी-कभी चतुर्थी) के दिन के अन्त में, विशेष यावश्यक किये जाते हैं। कई इन दिनो मे देवसिक प्रतिक्रमण के अतिरिक्त पाक्षिक, चातुर्मासिक और सावत्सरिक प्रतिक्रमण स्वतन्त्र रूप से करने की भी मान्यता रखते हैं और कई लोग चातुर्मास और सम्वत्सर के अन्त मे दो प्रतिक्रमण भी करते हैं t
प्र० मास वृद्धि होने पर चातुर्मासिक और सांवत्सरिक ( प्रतिक्रमण ) कब करने चाहिएँ ?
उ० : जो अधिक मास हो, उसे गौण कर देना चाहिए ( गिनना नही चाहिए) और गौरण करके वर्षा आदि किसी भी चातुर्मास मे कोई भी मास क्यो न बढा हो, कार्तिक अथवा द्वितीय कार्तिक पूर्णिमा आदि के दिन के अंत में प्रतिक्रमण करना चाहिए । सवत्सरी के सम्वन्ध मे तीन मत हैं-१ श्रावरण दो होने पर भाद्रपद मे प्रतिक्रमण करना और भाद्रपद दो होने पर दूसरे भाद्रपद मे प्रतिक्रमण करना, २ श्रावरण दो होने पर भाद्रपद मे प्रतिक्रमरग करना और भाद्रपद दो होने पर पहले भाद्रपद में प्रतिक्रमण करना, ३. श्रावण दो होने पर दूसरे
इस सम्बन्ध मे वर्धमान श्रमण संघ का नियम पालने वालों को एक प्रतिक्रमरण करना चाहिए ।