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________________ १७० 1 सुवोध जैन पाठमाला - भाग २ परवीसाए भावरणाहि : पाँच महाव्रत की पच्चीस भावनाएँ सम्यक् न श्रद्धी हो : दशाश्रुतस्कंध, वृहत्कल्प और व्यवहार के (१०+६+१०) २६ अध्ययन सम्यक् न श्रद्धे हो : सत्तावीस अनगार (साधु) गुरण सम्यक् न श्रद्धे हो : ग्राचा राग निशीथ के (२३+५) २८ अध्ययन सम्यक् न श्रद्धे हों : उनतीस पापश्रुत का प्रयोग किया छव्वीसाए दसा - कप्पववहाराण उद्देसर काले ह सत्तावीसाए श्ररणगार - गुरोह प्रट्ठावीसाए प्रायार-पक पहि एगूतीसाए पावसु-प्पसंगे हिं तीसाए हो, : तीस महामोहनीय स्थानो का सेवन किया हो : इकत्तीस सिद्ध के गुण सम्यक न श्रद्धे हों 1 बत्तीसाए जोग-सग हेहि : बत्तीस योग-संग्रह न किये हो तेत्तीसाए असायाहि : तैतीस आशातनाएँ की हो या निम्न श्ररिनाणं श्रासायलाए : अरिहन्तो की आागातना की हो सिद्धारण सायरखाए : सिद्धों को प्राशातना की हो आयरियाणासायरणाए : आचार्यों की श्राशातना की हो उपाध्याय की श्राशातना की हो महा-मोहरणीय-द्वारह एगतीसाए सिद्धाइ - गुणेहि 1 उवज्झायारण 17 साहूणं सायरणाए : साधुओ की आशातना की हो साहूणी सायरणाए : साध्वियो की आशातना की हो सावयारणं श्रासावरणाए : श्रावको की श्राशातना की हो सावियारण सायरणाए : श्राविकाओं की ग्रागातना की हो देवारणं असाय गाए : देवो की प्राशातना की हो
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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