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सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
परवीसाए भावरणाहि : पाँच महाव्रत की पच्चीस भावनाएँ
सम्यक् न श्रद्धी हो
: दशाश्रुतस्कंध, वृहत्कल्प और व्यवहार के (१०+६+१०)
२६ अध्ययन सम्यक् न श्रद्धे हो : सत्तावीस अनगार (साधु) गुरण सम्यक् न श्रद्धे हो
: ग्राचा राग निशीथ के (२३+५) २८ अध्ययन सम्यक् न श्रद्धे हों
: उनतीस पापश्रुत का प्रयोग किया
छव्वीसाए दसा - कप्पववहाराण
उद्देसर काले ह सत्तावीसाए
श्ररणगार - गुरोह प्रट्ठावीसाए प्रायार-पक पहि एगूतीसाए पावसु-प्पसंगे हिं
तीसाए
हो,
: तीस महामोहनीय स्थानो का सेवन किया हो
: इकत्तीस सिद्ध के गुण सम्यक न श्रद्धे हों
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बत्तीसाए जोग-सग हेहि : बत्तीस योग-संग्रह न किये हो तेत्तीसाए असायाहि : तैतीस आशातनाएँ की हो या निम्न श्ररिनाणं श्रासायलाए : अरिहन्तो की आागातना की हो सिद्धारण सायरखाए : सिद्धों को प्राशातना की हो आयरियाणासायरणाए : आचार्यों की श्राशातना की हो उपाध्याय की श्राशातना की हो
महा-मोहरणीय-द्वारह
एगतीसाए सिद्धाइ - गुणेहि
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उवज्झायारण 17
साहूणं सायरणाए : साधुओ की आशातना की हो साहूणी सायरणाए : साध्वियो की आशातना की हो सावयारणं श्रासावरणाए : श्रावको की श्राशातना की हो सावियारण सायरणाए : श्राविकाओं की ग्रागातना की हो देवारणं असाय गाए : देवो की प्राशातना की हो