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सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
पुरुष स्त्री की कथा करे नही, करे, तो जीभ को नीबू और इमली का दृष्टान्त | तीसरी वाड मे ब्रह्मचारी पुरुष स्त्री के साथ एक आसन पर बैठे नही, बैठे, तो आटे को कोले का दृष्टान्त तथा घी के घड़े को अग्नि का दृष्टान्त । चौथो वाड से ब्रह्मचारी स्त्री के गोपाग का निरीक्षण करे नही, करे, तो कच्ची ग्राँख को सूर्य का दृष्टान्त । पाँचवीं वाड में ब्रह्मचारी टाटी भीत आदि स्त्री
अन्तर मे खो पुरुष के विषयकारी शब्द सुने नही, सुने, तो मयूर को मेघध्वनि का दृष्टान्त । छठी वाड में ब्रह्मचारी पहले के काम भोगो का चिन्तन करे नही, करे, तो जिनरीक्षित को रत्नादेवी का दृष्टान्त तथा परदेशी को छाछ का दृष्टान्त । सातवीं वाड में ब्रह्मचारी पुरुष प्रतिदिन सरस आहार करे नही, करे, तो सन्निपात के रोगी को दूध और मिश्री का तथा राजा को ग्राम का दृष्टान्त । प्राठवीं वाड मे ब्रह्मचारी पुरुष सरस - नीरस आहार मर्यादा उपरात करे नही, करे, तो सेर की हाडी मे सचासेर का दृष्टान्त | नववीं वाड में ब्रह्मचारी पुरुष शरीर आदि की सुश्रूषा- विभूषा करे नही, करे, तो रेक के हाथ मे रत्न का दृष्टान्त । ये नववाड़ सम्यक् न श्रद्धी (पाली) हो
दस विहे समरण धम्मे
: दश श्रमण धर्म (यति धर्म )
एगारसहि उवासगपडिमा हि
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१. खती (क्षमा) २. मुत्ती
(निर्लोभता ) ३. श्रज्जवे ( ऋजुता, सरलता ) ४. मध्ये (मृदुता, कोमलता ) ५. लाघवे । ( लघुता ) ६. सच्चे (सत्य) ७. सजमे ( सयम ) ८ तवे ( तप) ६ चियाए (त्याग) १० बभचेर वासे ( ब्रह्मचर्य वास ) ये दग श्रमण धर्म सम्यक् न श्रद्धे (पाले) हो ।
: ग्यारह उपासक (श्रावक ) प्रतिमाएँ सम्यक् न पाली हो,