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सूत्र-विभाग-२८. गोयरग्ग-चरियाए प्रश्नोत्तरी [ १६१
३. अनेषणीय आहार लेकर भोग लेने पर गृहस्थ को यह विचार होता है कि 'मुझे थोड़ा दोष अवश्य लगा, पर मेरी भिक्षा व्रती ने भोगी, इससे मुझे बहुत धर्म हुआ' इन विचारो से उममे दोषो आहार बनाने की प्रवृत्ति चल पड़ती है और यदि व्रती उसे परठ देता है, तो गृहस्थ को यह भाव उत्पन्न होता है कि – 'यदि मैंने भिक्षा मे दोष लगाकर किसी प्रकार उन्हे दे भी दिया, तो वे उसे भोगते तो हैं नही, परठ देते है, तो मुझे व्यर्थ दोष क्यो लगाना?' इस प्रकार उसमें भविष्य मे दोषी भिक्षा बनरने की प्रवृत्ति नहीं चल पाती। भविष्य में उसकी दोषी प्रवृत्ति न चले। इसलिए भी अनेषरणीय भिक्षा पर० देना
आवश्यक है। इन आवश्यकताअो को देखते हुए भिक्षा परउना अपव्यय नही माना जा सकता।
प्र० प्राधाकर्म आदि ४२ दोष बताइए। उ०, इसके लिए समिति गुम्सि सार्थ देखिये।
प्र० ब्रतधारी तथा प्रतिमाघारी श्रावक को रात्रि को गौचरी लाना नही चाहिए। अतः इस पाठ को रात्रि प्रातक्रनरप में पढ़ने की क्या मावश्यकता है?
उ० २. श्रद्धाप्ररूपणा की शुद्धि के लिए २. अब तक सूर्य उदय नही हया, या अब सूर्य अस्त हो चुका है', अतिप्रकाश, बादल आदि के कारण इसका ध्यान न रहे और गौचरी हो जाय, तो उसकी शुद्धि के लिए ३. मर्यादा उल्लघन हो जाय, तो उसकी शुद्धि के लिए तथा ४. रात्रि को स्वप्न में गौचरी की हो और उसमे अतिचार लगे हो, तो उसकी शुद्धि मादि के लिए।
की वयर
की शुद्धि हो चुका है। गौचरी