________________
१५० ]
सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
विपक्षकार - श्रावक, 'श्रावक' है, अतः उसे 'श्रावकसूत्र' पढना चाहिए, श्रमण सूत्र नही ।
पक्षकार - साधु प्रतिक्रमण के साथ श्रावक प्रतिक्रमरण की तुलना करके इस विषय को सोचा जाय, तो श्रमरणमूत्र से भिन्न श्रावक के लिए कोई 'श्रावक सूत्र' रहता नही है । साधु सतियाँ कायोत्सर्ग मे प्रतिचार ग्रालोचना करने के पश्चात् चौथे प्रावश्यक मे सीधे ही व्रत, समिति, गुप्ति और प्रतिचार सम्मिलित पढते है | वैसे ही यदि श्रावक भी ग्रतिचार कायोत्सर्ग के पश्चात् चौथे ग्रावश्यक मे सीधे ही श्रमणसूत्र पढने वाले श्रावको के समान व्रत प्रतिचार सम्मिलित पढ ले, तो उनके लिए भिन्न श्रावकमूत्र कहाँ रह जाता है ? इम प्रकार भिन्न श्रावकसूत्र का प्रभाव भी इस बात को सिद्ध करता है कि श्रावक को श्रमण सूत्र पढना चाहिए । यहाँ यह बात भी ध्यान मे लेना योग्य है कि - प्रतिचारो का तीन बार पाठ करना उपयोगी भी नही है ।
पाठ २६ छब्बीसवां
विधि : वदना करके 'श्रावक सूत्र' या 'श्रमण सूत्र' पढने की प्राज्ञा है ।' कहकर श्रावक सूत्र या श्रमण सूत्र पढने काज्ञा ले | फिर जैसे काँटा निकलवाने वाला अपने पैर को वीरतापूर्वक दूसरे के सामने कर देता है या शल्य क्रिया
यह पक्ष-विपक्ष हमारी जानकारी के अनुसार है। विशेष पक्ष-विपक्ष उन न पक्ष-विपक्षकारों के जानकारों से जान लेना चाहिए ।