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________________ ५८ ] जैन सुबोध पाठमाला--भाग १ निर्दोष ; श्रीमानजी! यह सब भूल उपकारनाथ की है। आप तो नये आये हैं। पुराने अध्यापकजी ने उपकारनाथ से कहा था कि मुझे सामायिक की विधि और उपकरणो के सम्बन्ध मे वतावे, पर उसने आप जैसे नहीं बताया। मैंने जो मुंहपत्ति वॉधी, वह इसी ने इस प्रकार वाँधना सिखाई। इसने धोती को पहनना अनावश्यक बताया और केवल प्रतिज्ञा-सूत्र से ही सामायिक प्रत्याख्यानः का काम निकल सकता है-ऐसा कहा । मैं इसमे पूरा निर्दोप हूँ। ' उपकारनाथ ने सामायिक का वेग पहन कर सामायिक की विधि के साथ प्रत्याख्यान का पाठ पूरण करते हुए कहा : श्रीमान्जी! यह निर्दोप- झूठ बोलता है। देखिये, मेरी मुख-वस्त्रिका कितनी अधिक धुलो हुई, कितनी सुन्दर जमी हुई और कितनी कुगलता से मुंह पर पहनी हुई है। क्या मैं इसे ऐसी मुंहपत्ति बाँधना सिखाता? मैंने सांसारिक वेश पूरा त्याग दिया है और पूरा सामायिक वेश पहन लिया है तथा विधि से सामायिक ग्रहण की है। निर्दोष को चाहिए कि वह मुझ से इन सब बातों की अमूल्य शिक्षा ग्रहण करे। मैं सब के लिए स्वय को आदर्श उदाहरण के रूप मे प्रस्तुत करने की महान् सेवा बजाता हूँ, परन्तु यह मेरा उपकार हो नही मानता। कृतघ्न कही का} तटस्थकुमार भी अब तक पूरे तैयार हो चुके थे। उन्होने कहा :
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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