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________________ सभवतः यह पुस्तक सुयोग्य शिक्षको, जिज्ञासु बालकों श्रीर धर्म-रस-पिपासु सज्जनों के हाथ में नहीं पहुँच पाती - यदि रारणावास ( मारवाड ) मे प्रीष्मावकाश के १८ मई से १७ जून की श्रवधि मे स्था० जैन शिक्षण शिविर की योजना नहीं हो पाती और इन मुनियो के चरणो मे शिविरार्थियों को ज्ञानाराधना का पुनीत अवसर नहीं मिला होता । शिक्षण शिविर की योजना धार्मिक शिक्षरण के क्षेत्र में एक सुन्दर प्रयोग है । राणावास मे उक्त मुनिवृन्द के चरणो मे बैठकर विद्यार्थियों ने ज्ञानाराधन के साथ धर्माराधन के क्रियात्मक रूप मे भी एक शानदार मिसाल रखो। शिविर- काल की अल्पावधि मे १५,००० सामायिक, ३०० दयायें, ७५ उपवास, २ वेले, ३ तेले और १ पंचोले श्रादि हुए। गाँव से दूर स्टेशन के पास प्रायः शान्त जगह मे श्री कानमुनिजी म० सा० व पारसमुनिजी म० सा० को सफल धर्माध्यापन शैली ने बालको की धर्म-श्रद्धा को जागृत कर उनको ज्ञान-पिपासा को तोव्रतम बना दिया । कारण कि इन मुनिराजों के ज्ञान और क्रिया के समन्वित रूप ने शिविरार्थियों को यथार्थ सत्य का अनुभव कराया । हर ग्रीष्मावकाश मे ऐसे शिविर प्रायोजनों का कार्य सुचारू रूप से चले - इस हेतु शिक्षण शिविर समिति का गठन हुआ तथा समिति ने शिविरोपयोगी पाट्य-क्रम तैयार करने के लिये प० र० श्री पारसमुनिजी म० सा。 से निवेदन किया । म० श्री ने समिति के प्राग्रह को मान देकर पाठ्यक्रम तैयार करना प्रारम्भ किया । पाठ्यक्रम की प्रथम पुस्तक 'सुवोध जैन पाठमाला' हमारे सामने है | 'सुवोध जैन पाठमाला' 'यथा नाम तथा गुरणं' के अनुसार हमारे समाज मे प्रचलित शिक्षण साहित्य से अपनी कुछ अलग विशेषताएँ रखती है :
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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