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पाठ ६-साधु दर्शन
[ २७ चाहिए। थैली मे शाक-सव्जी, धान्य या सचित्त मेवा
आदि नही रहना चाहिए (वनस्पति का त्याग)। __ मंगल . यदि काँख मे वालक हो, तो ? पिता : उसे हटाना आवश्यक नहीं। सचित्त मिट्टी आदि
साथ मे रहने से उनकी हिंसा होती है। मुनिराज के सामने हिंसापूर्वक जाना ठीक नही, इसलिए उन्हे छोडना पडता है। बालक साथ मे रहने से उसकी कोई हिंसा नही होती। बालको को तो साथ रखना ही चाहिए। इससे वे भी वन्दना-नमस्कार आदि
करना सीखते है। दया : दूसरा अभिगमन क्या है ? पिता : 'अचित्त का विवेक ।' दया : इसका अथ क्या है ? पिता : दर्शन के समय अचित्त (जीवरहित) वस्तुएँ छोडना
आवश्यक नहीं है। अतः उन्हे न छोडते हुए, जिस प्रकार रखना चाहिए, उस प्रकार रखना। जैसे वस्त्र, अलकार आदि पहने हुए रक्खे जा सकते हैं, पर मानसूचक जूते, मुकुट आदि पहने हुए नही रहना चाहिए। छत्र (छाता) लगा हुआ नहीं रहना चाहिए। चँवर ढुलते हुए नहीं रहना चाहिए। साइकल ग्रादि वाहनो पर बैठे हुए नही रहना चाहिए,
उनसे उतर जाना चाहिए। दया : तीसरा अभिगमन क्या है ? पिता : 'एक शाटिक उत्तरासग करना।' दया : इसका अर्थ क्या है ?