________________
पाठ ६—साधु-दर्शन [ २५ बालक : जो अरिहंत को सुदेव, जैन साधुओ को सुगुरु और जैन
धर्म को सुधर्म माने, वह सम्यग्दृष्टि है। क्योकि
उसीकी दृष्टि (अर्थात् श्रद्धा) सम्यक् (अर्थात् सबी) है। मुनि : मिथ्यादृष्टि किसे कहते हैं ? बालक : जो अरिहत को सुदेव, जैन साधुनो को सुगुरु और
जैन धर्म को सुधर्म न माने, वह मिथ्यादृष्टि है। क्योकि उसकी दृष्टि (अर्थात् श्रद्धा) मिथ्या (अर्थात्
सच्ची नही) है। मुनि : मिश्रदृष्टि किसे कहते हैं ? बालक : जो सभी देवो को सुदेव, सभी साधुओ को सुगुरु और
सभी धर्मों को सुधर्म माने, वह मिश्रदृष्टि है। क्योकि उसकी दृष्टि अर्थात् श्रद्धा मिश्र अर्थात् मिलावट
वाली है। मुनि : मोक्ष पाने के लिए कौनसी दृष्टि आवश्यक है ? बालक : सम्यग्दृष्टि ।
पाठ 8 नवमां
साधु-दर्शन
श्री उत्तमचन्द्रजी कुछ वर्षों से मद्रास प्रान्त के किसी छोटे-से गाँव मे रह रहे थे। उनके दोनो 'पुत्र दयाचन्द्र और मगलचन्द्र का जन्म वही हुआ। वे बडे भी वही हुए। उन्हे कभी साधु-दर्शन नहीं हुए थे। इसलिए वे नही जानते थे कि