SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सम्मतियां: ____ सङ्कलन सुन्दर हुआ है, विषय को समझाने की शैली भी मनोरम है। -उपाध्याय श्री हस्तीमलजी म० सा० पुस्तक विशेषतानो से श्रोतप्रोत है। सग्रहरणीय, पठनीय • एवं पाठ्यक्रमानुकूल है। ___-मुनि श्री फूलचन्द्रजो 'श्रमण' पुस्तक की सामग्री बहुत उपयोगी है। सिद्धान्त का निर्वाह करते हुए विषय को सरल बना दिया गया है। समाज मे पाठावलियाँ तो कई छपी, किन्तु यह सर्वोपरि और अत्यधिक उपयोगी है। विद्यार्थियो को ही नहीं, उन्हें पढ़ाने वाले धर्माध्यापको के लिये भी समझने योग्य है । -रतनलालजी डोसी मम्पादक, 'सम्यग् दर्शन' सैलाना पुस्तक मे जैन धर्म विषयक ठोस व प्रामाणिक सामग्री ऐसे सरल ढग से दी है कि दुरूह तात्विक विषय भी बोधगम्य हो गया है। जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक प्रौढ लोगो के लिये यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। मुनिजी ने इस पुस्तक को लिखकर एक बडी आवश्यकता की पूर्ति की है। -रिखबराज कर्णावट एडवोकेट, सुप्रीमकोर्ट, जोधपुर. पुस्तक को देखकर पूर्ण सन्तोष हा। लेखक को श्रद्धा और समझाने की कला बहुत सुन्दर प्रतीत होती है। -डॉ० एन० के० गाँधी राजकोट (सौराष्ट्र) पुस्तक देख कर अति हर्ष हमा। जैन विद्यार्थियों को। धामिक शिक्षण प्रदान करने के लिये यह सुन्दर व उपयोगी है। - ठाकरसो करसनजो थानगढ (सौराष्ट्र)
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy